Book Title: Chale Man ke Par
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 231
________________ ၃၃၃ चलें, मन-के-पार उतना ही भव-भ्रमण किया, प्रेतात्मा की तरह हवा में भटका । जो जितना जागा, अस्तित्व को उतना ही आत्मसात किया । आत्म-जागरण स्वप्न और निद्रा के ज्ञान से अवतरित होता है । चित्त की स्थिरता के लिए योग ने जो मार्ग चने, उनमें यह भी एक है'स्वप्न निद्रा ज्ञानालम्बनम् वा' > स्वप्र और निद्रा के ज्ञान के सहारे भी चित्त की स्थिरता और स्वच्छता उपलब्ध होती है । स्वप्न स्वयं में एक झूठ है । सत्य तो यह है कि सपनों से बड़ा झूठ और कोई नहीं है । पर मजे.की बात यह है कि मनुष्य जितना स्वप्न में होता है उतना कहीं भी और कभी भी नहीं । स्वप्न मनुष्य की अभिव्यक्त वासना है । जो चित्त में दबा हुआ है, सपने में वही साकार होता है । स्वप्न चित्त-साक्षात्कार है, दमित की अभिव्यक्ति है । स्वप्न में जो देखा जाये, चित्त में उसकी सम्भावना न हो यह नामुमकिन है । खुली आँखों में तो जुबान बोलती है और बन्द आँखों में वृत्ति/वासना । एक भूखा आदमी भगवान का सपना नहीं देख सकता । भूखे का हर स्वप्न भोजन और पकवान से जुड़ा रहता है । दिन में दुष्पूर रहने वाली तृष्णा रात को सपने में गले तक पेट भर लेती है । धनवान को धन-सुरक्षा की चिन्ता रहती है, इसलिए वह चोरों के सपने देखता है। पति के सपने में कभी खुद की पत्नी नहीं आती । कभी पड़ोसिन आती है, तो कभी और कोई । स्वप्न दमित से रू-ब-रू है । जिसने मन में कुछ दबाया नहीं, उसे सपने कभी नहीं आ सकते । __ मनुष्य बीमार रहता है, सिर्फ तन से ही नहीं मन से भी । यदि मन अस्वस्थ है तो शरीर की स्वस्थता अपने आप निढाल हो जायेगी । एक स्वस्थ शरीर की परिकल्पना के लिए मन की स्वस्थता अनिवार्य हैं । व्यक्ति को मानसिक बीमारियों से मुक्त करने के लिए मन का अध्ययन आवश्यक है और मन की नब्ज पकड़ने के लिए स्वप्न से बढ़िया कोई अचूक साधन नहीं । स्वप्न मन की अभिव्यक्ति है । मन की इस समय क्या स्थिति है, उसके अन्तर्भाव क्या हैं, यह जानने के लिए हम यह देखें कि हम स्वप्न में क्या देख रहे हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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