Book Title: Chale Man ke Par
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 242
________________ करें, चैतन्य-दर्शन कर्म का आधार विचार है और विचार का जन्म-स्थान मन है । फसल अंकुरण के कारण है और अकुंरण बीज के कारण । तीनों परस्पर सगे-सम्बन्धी हैं । प्रगाढ़ता इतनी है कि तीन में से किसी एक में होने वाली हलचल शेष को भी प्रभावित करती है । मन, वचन, शरीर जड़ भले ही हों, पर चेतना का सारा व्यवसाय इन तीनों की व्यूह रचना के अन्तर्गत है । चित्त चेतना का ही स्तर है । यों समझिये कि चित्त वह कारवां है, जिसमें अच्छे-बुरे के दोस्त - दुश्मन संग-संग चलते हैं। अच्छे-बुरे के बीच होने वाला कलह ही मानसिक तनाव है। ध्यान है चित्त-का- अनुशास्ता । बिना इस अंकुश के चित्त का हाथी काबू से बाहर है । मानसिक स्वास्थ्य तो चित्त के अच्छे-बुरे संकल्पों के नियंत्रण से ही सम्भव है । विचार मन की सूक्ष्म तरंग है । कर्म और कुछ नहीं है, मन की सूक्ष्म तरंगों का अभिव्यक्ति है । लकवा खाये मन का कर्म कहाँ ! विचारों की तरंगों की प्रवाह मन के तन्त्र पर निर्भर है । बाहर से सम्पर्क का ईधन न मिले, तो मन का मौन होना नैसर्गिक है । बिना तेल-पेट्रोल के कैसे चल पायेगा वाहन । ईधन की कटौती और बढ़ोतरी पर ही वाहन की चाल है । मन का परिचय मैं भविष्य की कल्पना से कराऊँगा । चित्त मन से अलग अस्तित्व है । चित्त है अतीत का खण्डहर और मन है भविष्य की कल्पना । वर्तमान अतीत और भविष्य के प्रास्ताविक तथा उपसंहार के बीच का फैलाव है । दृष्टि चाहे अतीत में जाए या भविष्य में, साधक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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