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षट् चक्रों में निर्भय विचरण
डार्विन की एक बहुत बड़ी खोज मानी जाती है। उसने कहा था, मनुष्य बन्दर से पैदा हुआ है । आदमी बन्दर की ही सुधरी हुई अच्छी नस्ल है । डार्विन के अनुसार तो आदमी पैदा ही बन्दर से हुआ है । इसके विपरीत भारतीय तत्त्व-चिन्तक कहते हैं कि मनुष्य अपनी जिन्दगी में जो बुरे कार्य करता है, उसके नतीजे के रूप में अगले जन्म में बन्दर के रूप में पैदा होता है । इस मनीषा को समझिएगा ।
डार्विन ने खोजा कि बन्दर से आदमी पैदा हुआ, जबकि भारतीय तत्त्व-चिन्तकों ने कहा कि आदमी बन्दर से पैदा होता है । आदमी ही अपने कर्मों के अनुसार अगले जन्म में कीड़े-मकोड़े, बन्दर, गदहा आदि रूप में पैदा होता है । अगर इस जन्म में अच्छा कर्म किया तो देवता और बुरे कर्म किए तो नरक, पशु-पक्षी, जानवर बनोगे । डार्विन अपनी जगह ठीक है और भारतीय तत्त्व-चिंतक अपनी जगह ।
____ मैं डार्विन से दो कदम आगे रखने की कोशिश करूंगा । मेरी समझ से डार्विन और भारतीय तत्त्व-चिन्तक अपनी बात को ठीक तरह से नहीं कह पाए । आदमी से न बन्दर पैदा होता है और न ही बन्दर से आदमी | आदमी स्वयं बन्दर ही है । बाहर के आकार-प्रकार और लक्षण को देखकर जानवर व आदमी में खास अन्तर नहीं किया जा सकता । अफलातून ने तो कहा भी है 'मैन इज टू लेग्स एनिमल विदाउट फीदर्स' ('Man is two legs animal without feathers'), मनुष्य दो टांग वाला बिना पंखों का जानवर है । आदमी भी आखिरकार जानवर ही है । कोई चौपाया, तो कोई दोपाया ।
यह जरूरी नहीं है कि इस जिन्दगी में बुरे कर्म करोगे तो अगली
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