Book Title: Chale Man ke Par
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 214
________________ श्वांस-संयम से ब्रह्म-विहार २०५ वह एक दैनिक समाचार पत्र में उपसम्पादक था । उसके मन में ध्यान साधना के प्रति बहुत लगाव था । एक दिन वह बोला कि जब ध्यान-साधना करने बैठता हूँ तो मेरे मन में तरह-तरह के विचार उठते हैं । मैं शांत चित्त रह ही नहीं पाता हूँ। कोई उपाय बताइये । मैं तो परेशान हो गया हूँ । मन पर जितना नियंत्रण करने का प्रयास करता हूँ, यह उतनी ही तेजी से दौड़ने लगता है । मैंने उसके अंतरंग का अध्ययन किया । उसे कहा कि ठीक है, तुम आज से एक काम करो । जब शाम को ध्यान करने बैठो तो जो विचार तुम्हारे मन में आएँ, उन्हें आने देना । तुम एक पत्रकार की हैसियत से काम करना । मान लेना कि तुन्हें रिपोर्टिंग के लिए कहीं भेजा गया है और नेता भाषण दे रहा है । तुम उन विचारों को अपनी डायरी में उतारते चले जाना । वह बोला- इससे क्या होगा ? मैंने उसे कहा- तुम करके देखो, शेष मुझ पर छोड़ दो । वह चला गया और उसने मेरे कहे अनुसार ही किया । दूसरे दिन मेरे पास आया तो मैंने पूछा- लिख लाए ? बोला- 'जी हाँ !' मैंने कहा- ईमानदारी से लिखा है ना ? उसने 'हाँ' में सिर हिलाया । मैंने उसे कहा- 'अब तुम पन्द्रह दिन तक ऐसा ही करो ।' एक पखवाड़े बाद जब वह मेरे पास आया तो उसकी डायरी भर चुकी थी। मैंने डायरी ले ली और उसे फिर से नियमित ध्यान करने को कह दिया । करीब एक पखवाड़े के बाद मैंने उस डायरी में लिखी सामग्री को टाइप करवाया और उसी पत्रकार के अखबार में, प्रकाशित करने के नोट के साथ भेज दिया । उसने जब वे टंकित पृष्ठ पढ़े तो दौड़ा-दौड़ा मेरे पास आया और बोला'महाराजश्री ! आप तो काफी जानकार और विद्वान हैं । आपने यह क्या ऊल-जलूल लिखा है और इसे मेरे अखबार में प्रकाशनार्थ भेज रहे हैं ? ___मैंने कहा कि तुझे यह बोध आज हुआ है कि ये बातें ऊल-जलूल हैं । भाई ! ये मेरी नहीं, ध्यान-साधना के दौरान तुम्हारे दिमाग में आने वाली बातें हैं । इन्हें जरा एकान्त में जाकर पढ़ो । यह तुम्हारी आत्मकथा है । गांधी और टालस्टाय की आत्मकथा भले ही तुम पचास बार पढ़ चुके हो, मगर अपनी आत्मकथा को नहीं पढ़ा । अपने भीतर की आत्मकथा को पढ़ लेना, गाँधी की आत्मकथा को पचास बार पढ़ लेने से ज्यादा श्रेष्ठ है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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