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चलें, मन-के-पार पूजते फिरोगे | आज तुम्हारे सामने जिन है । आने वाले समय में लोग कहेंगे कि हमें कोई जिन, सद्पुरुष दिखाई नहीं देता । जो दिखाई देते हैं, वह भी एक मत नहीं हैं । आज तुम्हें एक मत के सद्पुरुष मिले हैं, तो अपना भविष्य संवार लो । मेरे जीते जी समाधि पा लो । दीये की मौजूदगी में अगर दीया न जलाया तो कब जलाओगे ?
मैं भी आपसे यही कहूंगा कि जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं है । वह तो बीतती जा रही है । उसका बीतना हमारे लिए चुनौती है | आदमी पचास वर्ष गुजारने के बाद भी सोचता है कि जिन्दगी अभी बाकी है । वह यह नहीं सोचता कि मेरा आने वाला कल कौन-सा भविष्य लेकर आएगा । मेरा कल वर्तमान बनेगा या मेरे लिए काल बनेगा, इस बात का भरोसा नहीं है ।
इसलिए मैं तो यही कहूंगा कि जिन्दगी को जितना डुबा सकते हो डुबा लो । डूबना ही उबरना है । तल तक डूबना सतही रहस्यों को जानना है । मृत्यु हमारे पास आए, उससे पहले मृत्यु को मार गिराना है । अमरता की मेंहदी इस तरह रचा लेना कि सिर्फ केसरिया-ही-केसरिया हो जाए । मेंहदी रचने पर भी न तो हरितिमा नजर आए और न लाल रंग, वहां तो एक ही रंग नजर आएगा और वह रंग होगा 'केसरिया' । एक ऐसा रंग अपने ऊपर चढ़ा लो कि लगाओ तो मेंहदी, मगर रंग कोई तीसरा ही निकल कर आए ।
साधना करोगे, ध्यान करोगे, लेकिन परिणाम 'समाधि' होगा । समाधि परम चीज है । जीवन की परम शाश्वत धरोहर है । जिस आदमी ने समाधि पा ली और डूब गया, उसने जिन्दगी में उपलब्धि ही पाई है । हर जिन्दगी मृत्यु की 'क्यू' में खड़ी है । इस 'क्यू' में कब किसका नम्बर आ जाए इसका पता नहीं है । हमारा नम्बर आए उससे पहले हमें मृत्यु की कतार से बाहर निकल जाना है और अमरता को आत्मसात कर लेना है । क्योंकि समाधि रास्तों का रास्ता है, समाधान है । समाधि के बाद कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता । समाधि का नाम ही महाजीवन, निर्वाण और जीवन-मक्ति है । महावीर समाधि को अपनी भाषा में मोक्ष कहते हैं, और बुद्ध उसे निर्वाण कहते हैं ।
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