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श्वांस-संयम से ब्रह्म-विहार
जीवन की व्यवस्थाएँ बनाए रखने के लिए मनुष्य ने आयाम खड़े किये हैं । शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण- ये सब मनुष्य द्वारा बनाये गए सोपान ही हैं । कोई व्यक्ति ब्राह्मण-कुल में जन्म लेने से ब्राह्मण और शूद्र-कुल में जन्म लेने से शूद्र नहीं हो जाता । मुझे मानव से बहुत प्यार है । भले ही उसने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया हो, या शूद्र कुल में । आदमी को उसके जन्म के कारण बांटा नहीं जा सकता । शूद्र-कुल में उत्पन्न होना नफरत का आधार नहीं है और ब्राह्मण-कुल में उत्पन्न होना पूजनीय नहीं है | आदमी तो शूद्र-कुल में पैदा होकर ब्राह्मण हो सकता है
और ब्राह्मण-कुल में पैदा होकर शूद्र हो सकता है । इसलिए आदमी को जन्म के आधार पर बांट डालने की चेष्टा मत करिएगा ।
मेरी समझ से तो हर आदमी शूद्र ही पैदा होता है । ब्राह्मणत्व तो प्राप्त करना पड़ता है । ब्राह्मण-कुल में पैदा होने वाला भी शूद्र तथा शूद्र-कुल में पैदा होने वाला भी शूद्र के रूप में ही जन्मा है। सच तो यह है कि व्यक्ति जन्म से कुछ नहीं होता | उसे ब्राह्मण कहना भी अपराध है और शूद्र कहना भी । मैं जिस व्यक्ति को ब्राह्मण और शूद्र सोचता हूँ, उस सोच के सारे आधार और मापदण्ड जीवन के साथ जुड़ें हैं, जन्म के साथ नहीं ।
हमारे शरीर के चार प्रमुख आधार हैं । पहला आधार- शरीर, दूसरामन, तीसरा- आत्मा और चौथा आधार है : परमात्मा । जो व्यक्ति देह-भाव में जीता है, वह शूद्र है । मन-भाव में जीनेवाला वैश्य, आत्मा-भाव में जीनेवाला क्षत्रिय और परमात्मा-भाव में जीनेवाला ब्राह्मण है ।
आदमी देह लेकर पैदा होता है और देह-भाव में जीता चला जाता है । इसलिए आदमी का अधिकांश जीवन शूद्र के रूप में ही बीतता
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