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समाधि के चरण : एकान्त, मौन और ध्यान
१८३ सकता है, मगर मौन तो हमेशा सत्य ही होता है । सारी बेईमानी बोलने के साथ ही आई है । व्यक्ति अपने में तल्लीन रहता है वहाँ भीतर कचरा नहीं भर पाता । जो आदमी झूठ बोलता है वह दूसरों के दिमाग में अपने दिमाग का कचरा भरता है । आपके घर में कोई कचरा डाल जाए तो आप पसन्द करेंगे ? जब कोई व्यक्ति अपनी खोपड़ी का कचरा आपकी खोपड़ी में डालता है तो वह आपको सुहाता है ।
यह भी तो आपके घर में कचरा डालने जैसा ही हुआ । जरा जागो ! सजग बनो । वह कचरा लेना है या नहीं । अपने आप को मौन में रमाना है या नहीं । आदमी शब्दों से गरीब है मगर मौन से धनी है । उसे बोलना तो बहुत आता है । इसीलिए तो नेताओं का बहुत स्वागत होता है । वे बहुत बोलते हैं । मेरी समझ में जो आदमी जितना अधिक बोलता है वह साधना के दृष्टिकोण से उतना ही पिछड़ा हुआ है । यदि आदमी कम बोलने का अभ्यास करे, तो उसके जीवन की आधी मुसीबतें तो ऐसे ही कम हो जाएं । बोलना ऊर्जा का प्रगटन है और मौन ऊर्जा का संकलन एवं सम्पादन ।
___ ध्यान ऊर्जा का आरोहण है । मनुष्य ऊर्जा है । ऊर्जा उसका व्यक्तित्व है । बिना ऊर्जा के वह शव है | ध्यान अपनी ऊर्जा से अपनी मैत्री है । ऊर्जा से ऊर्जा का घर्षण क्रोध है और ऊर्जा से ऊर्जा का आकर्षण वासना है । ध्यान ऊर्जा से स्वयं का योग है । ऊर्जा का न दमन करो और न घर्षण । ऊर्जा का ऊर्जा रूप रहना ही उसकी पूर्णता है ।
एकान्त अन्तर्यात्रा की तैयारी है, मौन भीड़ में भी अकेले रहने का आधार है और ध्यान अन्तरतल्लीनता, अन्तरलयबद्धता । ये तीन चरण हैं समाधि के लिए । समाधि है अहोभाव; शब्दातीत आनन्द-उत्सव । निमन्त्रण है उसी उत्सव के लिए । आओ और डूबो स्वयं के अहोभाव में, अहोरूप में, समाधि में ।
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