________________
ध्यान से सधती शान्ति, शक्ति, समाधि
पौ जन्म है, प्रभात बचपन है, दोपहर जवानी है, सन्ध्या बुढ़ापा है, रात मृत्यु है । जीवन एक बिना रुकी यात्रा है । पूर्व में उगा सूरज पश्चिम की ओर कदम-पर-कदम बढ़ाता है । हर कोई जीवन में कुछ-न-कुछ कमाता है, पैदा करता है । बाँझ अभागा माना जाता है । बाहर का कमाया-जमाया यहीं धरा रह जाता है । अपने भीतरी जीवन में कुछ पैदा किये बिना चले जाना I स्वयं का बाँझपन नहीं तो और क्या है ?
रात जीवन-कहानी का विराम है । सन्ध्या आ रही है । काल उपहास करे, उससे पहले सन्ध्या को सार्थक कर लेना सफेद बाल वालों की अनुभव-प्रौढ़ता हैं । जिन्दगी बहुत बीत चुकी है । शेष बची थोड़ी जिन्दगी के लिए भी आँख खुल जाये, तो लाखों पाये । यह जरूरी नहीं है कि जो काम पूरी जिन्दगी में नहीं होता, वह थोड़े समय में नहीं हो सकता । विद्यार्थी साल भर मेहनत कहाँ करता है ! परीक्षा की घड़ी ज्यों-ज्यों करीब आती है, मानसिकता उसके मुताबिक तैयार होती चली जाती है । परीक्षा के दिनों में समय कम पर लगन अधिक होती है । यह लगन ही सफलता की बुनियाद है ।
1
व्यक्ति को अपने समय की दूसरे सभी कामों से थोड़ी-थोड़ी कटौती करनी चाहिये और घड़ी - दो-घड़ी का समय ध्यान में लगाना चाहिये । अन्तर्शक्तियों के सम्पादन एवं जागरण के लिए रात को सोते समय और सुबह उठते समय ध्यान में स्वयं को सक्रिय अवश्य कर लेना चाहिये । घड़ी भर किये गए ध्यान का प्रभाव चौबीस घड़ियों तक तरंगित रहता है । दवा की एक गोली भी दिन भर स्वास्थ्य की लहरें फैला सकती हैं ध्यान का रंग चढ़ गया, वह उतरना सहज नहीं है। समुन्दर के पानी को पीने की चाह कौन करेगा !
। जिसे एक बार दूध पीने के बाद
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org