Book Title: Chale Man ke Par
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 207
________________ १६८ विचार स्वयं की भागवत् अभिव्यक्ति है । समाधि समाधानों-का-केन्द्र है । समाधान तो हजारों किस्म के होते हैं, पर समाधि समाधानों-का-समाधान है । यह उत्तरों का - उत्तर/ अनुत्तर है । भला, जो जगमहाहट सूरज में है, वह ग्रह-तारों में कहाँ से हो सकती है ? उसकी उजियाली को बादल ढांक नहीं सकता । इसलिए समाधि अन्तर-व्यक्तित्व के विकास की समग्रता है । ध्यान इसमें मददगार है । अचेतन मन को राहत देना ध्यान की प्रफुल्लता है । रोजमर्रा की तनाव भरी जिन्दगी में भी स्वस्थ मानसिकता तथा प्रफुल्लता को अंकुरित करना ध्यान की मौलिक देन है । चलें, मन-के-पार ध्यान और समाधि कोई चमत्कार नहीं है । यह चित्त के साथ एकाग्रता तथा वास्तविकता की दोस्ती है । चमत्कार मायाजाल भी हो सकता है, पर समाधि बाजीगरी और मदारीगिरी नहीं हो सकती चमत्कार हर आदमी नहीं कर सकता, पर समाधि हर आदमी पा सकता है तन्द्रा टूटी कि समाधि की देहरी पर पाँव रखा । । किसी ने मुझसे पूछा कि मन्दिर में घण्टा क्यों बजाया जाता है ? क्या भगवान को जगाने के लिए ? मैंने कहा, नहीं । मन्दिर में घण्टा बजाया जाता है अपने आपको जगाने के लिए, स्वयं को तन्द्रा से उबारने के लिए। ताकि दुनिया-जहान के बिखराव और भटकाव को रोककर मन्दिर में एकाग्रचित्त हो सके, मन्दिर हमारी श्रद्धा का घर है । वह हमारे चित्त की एक उज्ज्वल भाव- दशा है । जहाँ चित्त शांति और समाधि का आलिंगन करे, वही मन्दिर है । घण्टा भीतर के लिए जाग घड़ी है । उसे सुनकर यदि खुद जग गये, तो खुदा जगा है । खुद भी न जगे, तो खुदा को क्या जगाओगे ! वह जागृत के लिए जागृत और सुप्त के लिए सुप्त / लुप्त है । ध्यान हमें भीतर में आठों पहर जगाए रखता है । वासना की तन्द्रा ध्यान -प्रहरी को आन्दोलित नहीं कर सकती । इन्सान जकड़ा है वासना के पंजों में । उसकी जड़ें गहराई तक हैं । मन में जितनी गहरी वासना है, उतनी ही गहरी मुक्ति की भावना होगी, तभी पुनर्जन्म की जड़ उखड़ सकती है । जीवन का फूल सोये-सोये न मुरझा जाये, इसके लिए सावचेत रहना जीवन- कर्त्तव्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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