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चलें, मन-के-पार कर पाओगे । व्यक्ति का पहला चक्र है उसका शरीर, वासना । दूसरा चक्र है कषाय-तन्त्र । तीसरे का स्वभाव है राग द्वेष । इन तीनों चक्रों को पार कर जब व्यक्ति चौथे चक्र में प्रवेश करता है वहां से उलटी यात्रा शुरू हो जाती है ।
चौथे चक्र में पहले चक्र की वासना जो स्त्री या पुरुष रूप से जुड़ी थी, छूट जाएगी । चौथे चक्र में, जो मनोचक्र और हृदय चक्र है, वह आत्मा से जुड़ता है, वह व्यक्ति के आत्म-तत्त्व से जुड़ेगा और पांचवें चक्र, में आदमी निष्काम और निर्विचारिता में प्रवेश करेगा । व्यक्ति जहाँ अपने पाँचवें चक्र, कण्ठ-चक्र, में प्रवेश करता है वहीं क्षमा और अहिंसा पैदा होती है । उस समय व्यक्ति छठे चक्र की ओर अग्रसर होता है और आज्ञा-चक्र में प्रवेश करता है । इस चक्र का स्वभाव वीतरागता का है और जब व्यक्ति अपने सहस्रकमल में, ब्रह्माण्ड में, ऊपरी लोक में प्रवेश करता है, वहीं मोक्ष और निर्वाण होता है । वहीं व्यक्ति को कैवल्य आकर चूमता है
और परम ज्ञान उसका आलिंगन करता है । इस परम स्थिति को पाने के लिए पहला साधन एकान्त, दूसरा मौन और तीसरा ध्यान है । यही समाधि के तीन चरण हैं।
आप चुपचाप बैठे हैं । अच्छे लग रहे हैं। आप सभी बड़े हैं मगर चूंकि आप चुपचाप बैठे हैं, इसलिए बच्चे नजर आ रहे हैं । बच्चा अच्छा क्यों लगता है ? क्योंकि वह पाप से परे होता है और कम बोलता है । दो साल का बच्चा बड़ा सलोना लगता है । दो दिन का बच्चा और ज्यादा सलोना लगेगा । इसीलिए मैं कहता हूं कि यहाँ बैठे सभी लोग बच्चे हैं क्योंकि चुपचाप बैठे हैं ।
बच्चा पैदा होता है उस समय बोलना नहीं जानता । बोलना तो वह बाद में सीखता है । हमारा स्वभाव तो मौन ही है । उसमें डूबो । इतना डूब जाओ कि बोलना न रह जाए । वाणी से हमारा सम्बन्ध ही टूट जाए । आदमी बोलता क्यूं है ? दूसरों को प्रसन्न करने के लिए।
इसलिए मैंने कहा समाधि का पहला पथ एकान्त है, दूसरे से दूर हुए । दूसरा मौन है, ताकि हमारे विचार शांत हो जाएं । आदमी बोलने में ईमानदार नहीं होता, मगर मौन में ईमानदार होता है । बोलना झूठ हो
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