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ध्यान : प्रकृति और प्रयोग
१८१ है वह चेहरा, जो जन्म से पहले था, वह चेहरा जो मृत्यु के बाद भी सलामत रहेगा । यदि जीवन में हमने उस चेहरे को खोज निकाला, तो अनित्यता के इतिहास में शाश्वतता की यह अनूठी पहल कहलाएगी ।
मृत्यु जब भी आए, उसका मुस्कुराते हुए मन से स्वागत हो । मृत्यु हमारा जन्म-सिद्ध/जन्मना-प्राप्त अधिकार है । पर यह कैसा आश्चर्य ! अनित्यता के आँचल में पलने वाली जिन्दगी अनित्यता का भी बोध नहीं जुटा पाती । बुद्धत्व की प्राथमिक पहल अनित्यता के बोध से प्रारम्भ होती है । मनुष्य को मृत्यु से भय भले ही लगे पर जब तक जीवन है, उसकी जीवन्तता का सम्पादन एवं संरक्षण हमारा दायित्व है ।
मनुष्य संघर्षशील है, संवेदनशील भी, किन्तु शान्ति उसका प्रथम और अन्तिम लक्ष्य है । चैन की बाँसुरी के स्वर उसकी जीवन-आराधना है । तन की स्वच्छता, भवन की पूर्णता, भोजन की पौष्टिकता और धन की समुचितता वांछनीय है, परन्तु जीवननिष्ठ मूल्य इनसे अतिरिक्त भी हैं ।।
____ लोग धन संग्रह करते हैं, मकान बनाते हैं, परिवार पोषते हैं, मन की चंचलता समझते हैं, पर इस सम्पूर्ण वातावरण का कोई आधार/कर्ता/साक्षी भी है । हर व्यक्ति उस ऊर्जा का संवाहक है । जीवन की सारी संभावनाएँ बीज रूप में उसी से जुड़ी हैं ।
वह बरगद का वृक्ष कितना फला-फूला है । ढेर सारी शाखाओं से उसका खून-का-रिश्ता है, शीतलता और आत्मीयता का विस्तार भी खूब किया है, भरापूरा परिवार है उसका, पर पता है यह सब बीज का फल/फैलाव है । बरगद लदा है पत्तों/फलों से । हर फल एक ही बीज का परिणाम है, पर प्रत्येक फल में सैकड़ों बीज हैं । बरगद का बीज अब भी बीज रूप में है । अनगिनत बीज उससे फैले, पर अन्ततः वह बीज ही है । जो प्रथम था, वही अन्तिम है । मैं अपने उस मित्र को कैसे भूल सकता हूँ, जो जन्म के समय अकेला था; खूब फला-फूला, प्रेम का प्रसार किया और मरते वक्त निपट-निरपेक्ष था ।
बीज ने स्वयं को बीज रूप न माना, यही उसकी केन्द्र-च्युति और बोध-शून्यता थी । वृक्ष द्वारा बीज का स्मरण न केवल सम्यक्तव और
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