________________
१४२
चलें, मन के-पार अनूठा-निराला संगीत पैदा हो सकता है । जहाँ बजेगी अनहद की बाँसुरी ।
'अनहद बाजत बाँसुरिया'- वह वंशी-रव सुनायी देता है, जिसे अनाहत कहा गया है । जब जप और अजपा-जप दोनों के पार चलोगे, तभी अनाहत साकार होगा । अनाहत का अर्थ होता है, जो बिना बजाये बजे । दो होठों से तो हर कोई आवाज कर सकता है । खोजो वह स्थान, जहाँ बिना अधरों के भी आवाज होती है । दो हाथों से तो बच्चा भी ताली बजा लेगा । साधना तो उस स्थान को ढूँढ़ने का नाम है, जहाँ एक हाथ से ताली बजती है ।
वह स्थान आत्म-तीर्थ है । वह अनुगूंज आत्मा की झंकार है । अगर हम विचारों और शब्दों से ही भरे रहे, तो उस परा-झंकार से कोषों दूर रह जायेंगे ।
मनुष्य जन्म से मृत्यु तक मात्र शब्दों की ही यात्रा करता है । शब्द ही कभी अहंकार का कारण बन जाते हैं, तो कभी क्रोध के । किसी ने अच्छे शब्द कह दिये तो तुम मुस्करा उठे और बुरे कह दिये तो अपने को अपमानित महसूस करने लगे । शब्दों ने ही अंहकार को बनाया और शब्दों ने ही क्रोध को । देखा नहीं, आदमी शब्दों के माया-जाल के कितना पीछे पड़ा है ! सुबह से शाम तक वह शब्दों के दायरे में फलता-फिसलता रहता है । आखिर दूसरों के शब्दों से मिलेगा क्या ? सम्मान मिल जायेगा, प्रशस्तियाँ मिल जाएंगी, प्रशंसा मिल जायेगी । मात्र शब्द-व्यवस्था को व्यक्ति ने अपना सम्मान और स्वाभिमान मान लिया है । यह प्रशंसा नहीं, मात्र छलावा है । अपने आपको मात्र शब्दों से भरना है ।
'सुधा' कह रही थी कि मैंने अखबार पढ़ना छोड़ दिया, क्योंकि अखबार पढ़ना तो स्वयं को शब्दों से भरना है ।
धन्यवाद । अन्तर्यात्रा तो निःशब्दता से प्रारम्भ होती है । लोगों में अखबार पढ़ने की आदत इतनी आम हो गई है कि उन्हें सोने से पहले तो जासूसी उपन्यास चाहिये और सुबह जगकर बैठते ही राजनीति की करतूतों को बताने वाला अखबार चाहिये । क्या हमें जासूसी करनी है या राजनीति के दाव-पेंच लड़ने हैं ?
आश्चर्य तो तब होता है जब सन्त-महात्मा और साधु-मुनि लोंग भी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org