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ध्यान : स्वयं के आर-पार
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को तलवार से काट भी कैसे पाएगा ? डर है कि मनुष्य कहीं अपनी छाया को काटने के चक्कर में अपने पाँवों पर घाव न कर ले ।
ध्यान तो जीवन को कमल की तरह निर्लिप्त करना है । अपनी किसी भी पंखुडी को कीचड़ से न सटने देना ही जीवन में आत्म- जागरण-की-पहल है । प्रमाद तो हृदय में संसार को बसाना है । जिन्दगी के कारवाँ में कितने ही हमसफर बन जाते हैं और कितनों के लिए विरह की कविताएँ रच जाती हैं । इस गुजरने और बिछुड़ने के बीच होने वाले भावों को स्वयं के चित्त पर छायांकित न करने का नाम ही साधना है ।
ध्यान सिर्फ उन लोगों के लिए नहीं है, जिनके जीवन का वृषभ बूढ़ा हो चुका है । ध्यान के लिए चाहिये ऊर्जा । यौवन ऊर्जा का - जनक है ध्यान और यौवन का जिगरी संबंध है । जो अपनी जवानी का हाथ ध्यान के हाथ से मिला लेता है, उसके सामने संसार का हर तूफां परास्त है ।
तनाव के बीज जवानी में ही बुए जाते हैं । शैशव तनाव-के-पार है । ध्यान मनुष्य को बुजुर्ग नहीं बनाता है । ध्यान स्वयं की शैशव - में वापसी है । परमात्मा शिशु के ज्यादा पास है । उसे बेहद प्रेम है बच्चों से । जीवन को सदैव शिशु की तरह निर्मल, निश्छल और सरल बनाये रखने का उपनाम ही सहज-योग है । यह वह योग है, जिसे साधने के लिये दुनिया-भर के योगों की पगडंडियाँ हैं ।
सहजयोग को साधने के लिए मनुष्य स्वयं को दूसरे के प्रभावों से मुक्त करे । मैं दूसरों को प्रभावित करूँ- यह तृष्णा ही संसार की नींव को और चूना- सिमेन्ट पिलाती है । प्रभाव सहजता से किलकारियाँ भरे तो ही वह टिकाऊ बन पाता है । ऊपर से लादा गया प्रभाव अन्तरंग की अभिव्यक्ति नहीं, वरन् ओहदे या पैसे का प्रताप है ।
प्रभाव मन की तृष्णा है और स्वभाव तृष्णा का अभाव है। ध्यान मन से ऊपर उठने की बेहतरीन कला है । आत्म जागरण मन से ऊपर उठना है, विचार से ऊपर उठना है, शरीर से ऊपर उठना है । चैतन्य-दर्शन
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