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ध्यान : संकल्प और निछा की पराकाष
१६३ और पहचानना है । दुनियादारी के रंग में इतने रच-बस गये हो कि आज स्वयं की सम्पदा को भी खोजने की जरूरत आ पड़ी है । ईश्वर की संम्भावना भी हमारे जीवन से जुड़ी है । इसलिए ईश्वर की उपासना भी अपनी ही उपासना है । स्वयं को टटोलना ईश्वर को ही टटोलना है । ___हरि बोलौ हरि बोल'- उसकी स्मृति ही उसकी प्राप्ति का नुस्खा है । हरि का अर्थ होता है हरने वाला । तुम उसे याद करो, वह तुम्हें याद करेगा | भले ही अन्धेरा हो, पर टटोलने पर वह मिल ही जायेगा । क्योंकि हम से अलग नहीं है हमारी सम्पदा । यदि उसने एक बार भी हाथ थाम लिया, हमारा समर्पण स्वीकार कर लिया, हमारे परमात्म-संकल्प को सर्वतोभावेन मान लिया, तो उससे गलबांही कल की प्रतीक्षा नहीं करेगी । जिसे हम हाथ समझ रहे हैं, वह हाथ नहीं, वह पारस है । फिर हम वह न रहेगें जो अभी हैं । हाथ यदि पारस थामे तो लोहा लोहा कैसे रह पायेगा ! हम स्वर्ण-पुरुष हो सकते हैं, उसका हाथ हमारी ओर बढ़ा हुआ है । आवश्यकता है अपना हाथ बढ़ाने की, अपने संकल्प और अपने निष्ठा-मूल्यों की ।
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