________________
१४४
चलें, मन-के-पार होना चाहिये । पहला, दूसरा और तीसरा चरण दस-दस मिनट का है और अन्तिम चरण पन्द्रह मिनट का ।
ध्यान-योग के पहले चरण में ॐ का पाठ करो । उसका लम्बा उच्चारण करो यानि उसका जोर से रटन करो । दूसरे चरण में होठों को बन्द कर लो और भीतर उसकी अनुगूंज करो । जैसे भौरे की गूंज होती है । वैसी ही ॐ की गूंज करो | तीसरे चरण में मनोमन 'ॐ' का स्मरण करो । श्वांस की धारा के साथ 'ॐ' को जोड़ लो । तल्लीनता इतनी हो जाये कि श्वांस ही 'ॐ' बन जाय । चौथे चरण में बिल्कुल शान्त बैठ जाओ ।
___पहला चरण पाठ है, दूसरा चरण जाप है, तीसरा चरण अजपा है और चौथा चरण अनाहत है । चौथे चरण में पूरी तरह शान्त बैठना है, स्मृति से भी मुक्त होकर । इस शान्ति के क्षणों में ही अनाहत की सम्भावना दस्तक देगी ।
___ 'ॐ' परमात्मा का ही द्योतक है । इसलिए इसमें रचो | यह महामन्त्र है । सारे मन्त्रों-का-बीज है यह । हर मन्त्र किसी-न-किसी रूप में इसी से जुड़ा है । इसलिए ॐ मन्त्र, मन्त्रों की आत्मा है, योग की जड़ है ।
एक पेड़ में पत्ते हजारों हो सकते हैं, पर जड़ तो एक ही होती है । जिसने जड़ को पकड़ लिया, उसने जड़ से जुड़ी हर सम्भावना को आत्मसात् कर लिया ।
'ॐ' कालातीत है, अर्थातीत है, व्याख्यातीत है । परमात्मा भी इसी में समाया हुआ है और यह परमात्मा में समाया हुआ है । ईसाइयों का आमीन 'ॐ' ही है । जैनों ने 'ॐ' में पंच परमेष्ठि का निवास माना है । हिन्दुओं ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संगम माना है इसे । परमात्मा में डूबने वाले 'ॐ' में डूबें । ॐ से ही अस्तित्व ध्वनित होता है । 'ॐ' से ही परमात्मा अस्तित्व में घटित होता है ।
'ॐ शान्ति' - इसके आगे और कोई चरण नहीं है ।
000
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org