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चलें, मन-के-पार १४८ आत्म-अस्तित्व और परमात्म-सम्पदा से है । ___ 'ॐ' के तीन वर्ण- अ, उ, म त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं । इन्हीं तीन वर्गों का प्रतीक बना है शिव-शक्ति का त्रिशूल । आदिनाथ के अ से ओम् की शुरूआत है और महावीर के म पर 'ओम्' का उपसंहार । चाहे जितने अवतार, बुद्ध-पुरुष और तीर्थंकर क्यों न होते रहें, सब ॐ-ही-ॐ होते रहेंगे ।
संसार के किसी भी कोने में चले जाओ, 'ॐ' का पूर्ण या अपभ्रंश मिल ही जायेगा । बिना 'ओम्' के हर धर्म अधूरा है । धर्म जीवन का स्वभाव है, सांसों में रमने वाला व्यक्तित्व हैं और 'ॐ' अस्तित्व की परम उपज और चरम झंकृति है।
____ ओम् जहाँ भी गया, जिस भी रूप में भी गया, सबका आराध्य और मन्त्रों का ताज बनकर रहा । यदि भारतवासियों को अपने अध्यात्म का एक ही प्रतीक विश्व के सामने पेश करना हो, तो 'स्वस्तिक' और उसके नाभि-स्थल में 'ओम्' को दर्शाना चाहिये । अब तो ईसाइयत भी ओम् को स्वीकार करने लग गयी है । वे मानने लग गये हैं कि उनका 'आमीन' उच्चारण वास्तव में 'ओम्' का ही अपभ्रंश या परिवर्तित रूप है । जब मैंने कई 'चों' पर क्रॉस के बीच 'ओम्' को प्रतिष्ठित देखा, तो मुझे लगा कि ईसाइयों का यह प्रतीक अध्यात्म
और कर्म-योग का संगम है । 'ओम्' भारत से यहूदी देश पहुँचते-पहुँचते ‘आमीन' हो गया और 'स्वस्तिक' 'क्रॉस' । 'क्रास' स्वस्तिक का ही परिवर्तित रूप है । आखिर स्वस्तिक ने कितनी लम्बी-चौड़ी यात्रा की । यात्रा में वह घिसा भी, कटा भी और जो रूप बचा उसे हम आज क्रॉस के रूप में देख रहे हैं ।
स्वस्तिक केवल कर्म-योग का ही परिचायक नहीं है, वरन् स्वास्थ्य का भी प्रतीक है । 'वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन' ने 'रेडक्रॉस' का चिह्न स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के प्रतीक के रूप में माना है । उसकी 'स्वस्तिक' से बड़ी समानता है । रेडक्रॉस का सम्बन्ध मात्र स्वास्थ्य-सेवा से है; जबकि स्वस्तिक का सम्बन्ध जीवन की समग्रता से है ।
'स्वस्तिक' गति है और 'ओम्' शान्ति । विकास और आनन्द दोनों क् सन्देशधारी है यह । 'स्वस्तिक' क्रास बना तो 'ओम्' का भी स्वरूप बदला ।
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