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ॐ : मन्त्रों का-मन्त्र
१४१ लोग उसके कैसेट्स सुनने से भी डरने लगे हैं । पॉप सैकड़ों लोगों की मृत्यु का कारण बना है । मोजल्ट के संगीतों में एक संगीत है "नाइन्थ सिंफोनी"। उस पर भी रोक लगा दी गई है ।
वस्तुतः ध्वनि में ऊर्जा की एक विशेष सम्भावना है । योग-मनीषा के अनुसार तो ध्वनि प्रणव है, और प्रणव ईश्वर का वाचक है । ध्वनि शाब्दिक है, अशाब्दिक भी ।
सबद सबद बहु अन्तरा, सार सबद चित देय । जो सबदे साहब मिलै, सोई सबद गहि लेय ।
'सबद' और शब्द' में बहुत अन्तर है । जो शब्द हम उच्चारते हैं वे तो बोल-चाल के हैं । उन शब्दों से भगवत्ता नहीं मिला करती । जिन्हें हम शब्द कहते हैं, उनसे तो हमें ऊपर उठना होगा । उस पराशब्द का श्रवण तो भीतर की निःशब्द-यात्रा से सम्भावित है । वह शब्द अभी भी है। हमारे भीतर उसे सुना जा सकता है। वह शब्द 'ॐ' है । ॐ हमारी चेतना के अन्तस्थल में केन्द्रित है । क्योंकि ॐ परमात्मा का वाचक है और परमात्मा हमारा हमारे भीतर है । तो निश्चित तौर पर ॐ भी हमारे भीतर है । इसकी अनुगूंज सुनायी दे सकती है । यह मूल ध्वनि है, न केवल हमारी वरन् सम्पूर्ण जगत् की भी । विचारों से जितने शान्त बनोगे, उसकी अनुगूंज उतनी ही साफ सुनाई देगी । परम शान्ति में ही परम अस्तित्व रहता है ।
चित्त की परम शान्ति में शब्द ध्वनित नहीं होते । वहाँ तो हमारा अस्तित्व ही ध्वनित होने लगता है । उस ध्वन्यावस्था का नाम ही 'ॐ' है । यह वह क्षण है जब गंगोत्री गंगा में समा जाती है । "सुरत समानी सबद में"- जब हमारी सारी स्मृति इस मूल शब्द में समा जाती है, तो व्यक्ति काल-मुक्त पुरुष हो जाता है । अमृत बरसने लगता है । वीणा नहीं होती, तब भी संगीत सुनायी देता है ।
यह परा-संगीत ही किसी को आगम के रूप में सुनायी दिया, किसी को वेद-उपनिषद के रूप में, किसी को कुरान, बाइबिल या पिटक के रूप में । यह संगीत हमारी चेतना की मूल ध्वनि है । हर व्यक्ति एक स्वतन्त्र चेतना है। इसलिए सबके संगीत अपने-अपने ढंग के होते हैं । हम से भी ऐसा ही
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