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ॐ : मन्त्रों का - मन्त्र
'तस्य वाचकः प्रणवः'- 'प्रणव' ईश्वर का वाचक है । प्रणव का अर्थ है ॐ । ॐ ध्वनि-विज्ञान की परा-ध्वनि है । ब्रह्माण्ड का सम्पूर्ण संकोच और विस्तार ध्वनि से ही सम्पादित हुआ है । सन्त-मनीषी लोग ध्वनि को ही विश्व की प्रथम अस्मिता मानते हैं ।
वैज्ञानिकों के अनुसार संसार की मूल ऊर्जा विद्युत रही है, किन्तु ऋषि-महर्षियों ने ध्वनि को मूल ऊर्जा माना है । वैज्ञानिक विद्युत को पहला चरण मानते हैं और ध्वनि को दूसरा । जबकि मनीषी सन्तों ने ध्वनि को पहला चरण माना है और विद्युत को अगला । ध्वनि से ही विद्युत पैदा होती है ।
वैज्ञानिकों और तत्त्व - मनीषियों में ध्वनि और विद्युत को लेकर थोड़ा-बहुत मतभेद हो सकता है, किन्तु दोनों ही पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि ये ऊर्जा के अगुवा चरण हैं । बाइबिल में 'ध्वनि' बनाम 'सबद' को ही पहले-पहल माना है। यीशू कहते हैं शुरू में 'सबद' ही था - 'इन द बिगनिंग देयर वाज वर्ड' । प्रारम्भ में सिर्फ शब्द था । 'ऑनली दि वर्ड एग्जिस्टेड एण्ड नथिंग एल्स' । शुरू में केवल शब्द ही था । शब्द के अतिरिक्त और कुछ नहीं था । इसलिए हमारी साधना हमें उस शब्द की ओर ले जाती है, जो हम सबसे पहले था । इसलिए जिसने एक शब्द के सम्पूर्ण अन्तरंग को जान लिया, उसने समग्र ज्ञान को आत्मसात् कर लिया ।
'शब्द' का अर्थ वह नहीं है, जो हम अपने होठों से बोलते हैं । शब्द का सम्बन्ध हिन्दी-अंग्रेजी के अक्षरों से नहीं है । एक शब्द तो वह होता है, जिसका उच्चारण मनुष्य करता है और एक शब्द वह है, जिससे मनुष्य स्वयं उच्चारित हुआ है । शब्द से ही विद्युत बनी और विद्युत से
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