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चलें, मन के पार - अगर जीवन का कुछ बोध हुआ है, या बोध पाने के लिए कोई अन्तरभाव जगा हो, तो बढ़ो । जिनके पंख लग आए हैं, वे आगे आएँ
और अज्ञात में छलांग लगाकर उसे ज्ञात करें । जहाँ हो, वहाँ बेर खटे हैं । आगे बढ़ो महकते बदरीवन में । 'वैली ऑफ फ्लावर्स' में आपकी प्रतीक्षा है ।
__ चलती का नाम गाड़ी है, खड़ी का नाम खटारा- चलो तो ही कृतार्थ होओगे । अपना होश, अपना बोध, अपना जोश- तीनों को एक करो । विराट को पाने के लिए विराट उद्यम में संलग्न हो जाओ । साधना कोई मक्खी उड़ाना नहीं है । वह तो हमारा निर्णय है । हमारी अभीप्सा की पूर्ति के लिए माध्यम है साधना । 'सडन एनालाइटमेंट' समाधि और सिद्धि तत्काल हो सकती है । जरूरत है ऊँचे संकल्प की, संलग्नता की । मूर्छा की नींद बड़ी गहरी है । जब तक समग्रता से सतत न जुड़ोगे, तब तक यह नींद क्षणभंगुर होने वाली नहीं है । प्रयास हो परिपूर्ण । कुनकुने प्रयासों से ऊर्ध्वारोहण/वाष्पीकरण नहीं हो सकता ।
किसी ने कहा परमात्मा सबकी रक्षा करता है । उसकी बात सम्राट को न गमी । सम्राट ने उसे बाँधकर बर्फीली नदी में खड़ा कर दिया । सम्राट ने तो सोचा कि शायद वह बर्फ में जमकर मर गया होगा, किन्तु वह योगी सम्राट के सामने दूसरे दिन भला चंगा खड़ा था । पूछताछ करने पर एक सैनिक-प्रहरी ने कहा- यह रात भर नदी में खड़ा उस दीये को निहारता रहा, जो आपके महल में जल रहा था । सम्राट ने कहा, यह धोखा है । तुम दीये के ताप के सहारे नदी में रहे ।
योगी सम्राट के तर्क पर मुस्कुराया । उसने थोड़े दिनों बाद सम्राट को दावत दी । सम्राट सुबह ग्यारह बजे ही भोजन के लिए पहुँच गया । सन्त ने बताया, भोजन तैयार हो रहा है, परन्तु दोपहर होने तक भी भोजन न मिला । सम्राट ने पूछा, क्या बात है ? अभी तक भोजन नहीं पका ? सन्त ने कहा, पक रहा है । आखिर सांझ होने को आ गयी । सम्राट बेचैन हो उठा । भूख के मारे बड़ी दयनीय दशा हो गयी थी उसकी । वह जब भी भोजन के लिए पूछे, सन्त की एक ही बात सुनने को मिलती- 'पक रहा है महाराज ! बहुत जल्दी पक जाएगा' ।
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