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चलें, मन-के-पार शक्ति उद्यम के लिए है । 'उद्यमो भैरवः'- 'उद्यम' ही भैरव है । भैरव प्रतीक है ब्रह्म का, चैतन्य-क्रान्ति का ।
उद्यम ऊँचा यम है । उद्यम हो मूर्छा-के-कारागृह से बाहर निकलने का । उद्यम हो श्रद्धा, सामर्थ्य, स्मृति और समाधि प्रज्ञा का । उद्यम जितना तीव्रतम/पवित्रतम होगा, सिद्धि उतनी ही करीब होती जाएगी । उद्यम कोई चुल्लू भर पानी में डूबना नहीं है । समग्रता से किया जाने वाला आध्यात्मिक प्रयास ही उद्यम है । वेग जितना तीव्र होगा, गंगा गंगासागर-की-निकटता उतनी ही जल्दी पाएगी । प्रवाह यदि तीव्रतम है, तो वह सिर्फ निर्झर ही नहीं है, वरन् विद्युत उत्पादन का कारण भी है । सूर्य स्वयं में आग का गोला है । वह अपनी किरणों को बिखेर रहा है । अगर वह अपनी समग्र किरणों को अपने में समेट ले तो जरा कल्पना करो कि उसकी शक्ति उससे कितनी गुनी हो जाएगी !.जब दो बादल परस्पर टकराते हैं, तो अपनी समग्रता के साथ टकराते हैं । उनके संवेग बड़े तीव्र होते हैं ।
____ 'तीव्र-संवेगानाम् आसन्नः' जिनके आसन की गति तीव्र है, उनकी समाधि/सिद्धि शीघ्र सधती है । चाहे जैसी सघन घटा हो, निशा का चाहे जैसा तिमिर डटा हो, किन्तु धरती और आसमान को ज्योतित करने के लिए विद्युत की एक चमक ही काफी है। सिर्फ शर्त यही है कि वह समग्र हो, तीव्रतम हो, परिपूर्ण हो ।
वास्तव में उद्यम और प्रयत्न ही जीवन की जीवन्तता है । मन बड़ा आलसी है । उसे सीढ़ी ही मंजिल लगती है । जब तक पंखों को हवा में न खोले, तब तक पंछी के लिए आकाश जीवन का उत्सव-स्थल नहीं, अपितु मृत्यु-का-खतरा दिखायी देता है । पर आकाश में उड़ने का खतरा तो मोल लेना ही होगा, तभी पंखों-की-सार्थकता है ।
एक बार ऐसा ही हुआ ।
किसी पक्षी-दंपति के एक बच्चा पैदा हुआ । उसके पंख भी लग आये, पर वह उड़ना नहीं चाहता था । उसके माता-पिता ने उसे आकाश में उड़ने के लिए प्रेरित भी खूब किया, पर वह तो आकाश को देखते ही डर के मारे अपनी आँखें मूंद लेता । अपने नीड़ को और मजबूती से पकड़ लेता । आखिर
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