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ऊर्जा का समीकरण
जब पाओ स्वयं को घर में अकेले, डूब जाओ स्वयं में, भूल जाओ संसार को, परिवार को । स्वयं में इतने डूब जाओ कि महाशून्यता साकार हो जाये, महाजीवन में प्रवेश हो जाये । जब पाओ किसी को अपने निकट, तो बरसाओ प्रेम की रसधार, अभिषेक कर दो उसका अपने अपनत्व से, अपनी सज्जनता से । यह शुद्ध प्रेम ही अहिंसा का मूल स्वर है ।
दुनिया में दो मोटी परम्पराएँ हैं- ध्यान की और भक्ति की । कोई धर्म ध्यान पर महत्व देगा और कोई भक्ति पर । मगर यह पद्धति ध्यान
और भक्ति का समीकरण है । ध्यान और प्यार ही महाजीवन की अनुभूति के मुख्य आधार हैं ।
ध्यान है भीतर की यात्रा | भीतर की यात्रा तो बहुत ही छोटी है, कोई लम्बी-चौड़ी यात्रा नहीं है, कोई हजारों मील की यात्रा नहीं है । भीतर की यात्रा के लिए उठाए जाने वाले ये दो-चार कदम भी बेहतरीन होंगे । भीतर की साधना का एक मात्र उपाय यह है कि जब व्यक्ति ध्यान में प्रवेश करे, तो अपने आपको उसके लिए पूरी तरह तैयार कर ले । उसके लिए संकल्प कर ले, बिना संकल्प ध्यान सधता नहीं है । जो व्यक्ति ध्यान में संकल्पवान होकर प्रवेश करता है, उसके लिए ध्यान की सिद्धि शत-प्रतिशत होती है ।
संकल्प का अर्थ होता है अपनी सारी उर्जा को किसी एक बिन्दु पर एकत्र कर लेना । अपने मन में किसी बात को ठान लेना संकल्प नहीं
मैं जो बातें कहूँगा, वे लोहार वाली हैं, सुनार वाली बातें मैं नहीं करूँगा । सुनार सौ दिन तक धीरे-धीरे वार करता है और सोना घड़ता है । इसके विपरीत लोहार एक दिन की चोट में ही अपना काम कर डालता है । मेरी हथौड़ी भी लोहार वाली है, जो सुनार की सौ-सौ चोटों के बराबर एक-एक चोट लगाती है ।
जिन्दगी में या तो रूपान्तरण हो जाएगा या फिर आप मुझसे छूट जाएंगे । मेरा प्रयास तो यह रहेगा कि आपकी जिन्दगी में रूपान्तरण हो जाए । ऐसा रूपान्तरण, जो जिन्दगी में दीक्षा घटित कर दे । इसलिए
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