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जलती रहे मशाल
६७ यदि आग बुझ गई तो मशाल एक लकड़ी का डंडा मात्र रह जाएगी । मशाल की उपयोगिता उसकी आग और रोशनी के कारण ही है । व्यक्ति की ज्योतिर्मयता भी उसके व्यक्तित्व पर ही टिकी है । बिना व्यक्तित्व का व्यक्ति निष्प्राण है, निस्तेज है, चलता-फिरता शव है ।
व्यक्तित्व वैयक्तिक जीवन का एक आदर्श है । वह डींग हाँकना नहीं है, सौन्दर्य का प्रदर्शन नहीं है; वह तो यथार्थ की जीवन में झंकृति है । महान् व्यक्ति वे माने जाते हैं जो महान् व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं । व्यक्ति के कृतित्व की समीक्षा भी उसके व्यक्तित्व के आईने से ही होती है । संसार किसी व्यक्ति को आदर भी देता है, तो उसके व्यक्तित्व के कारण ही है । उसके लिए व्यक्ति नहीं, व्यक्ति का व्यक्तित्व मुख्य होता है । व्यक्ति तो राम और रावण दोनों ही थे । महावीर और गोशालक भी व्यक्ति थे । गांधी और हिटलर भी व्यक्ति ही थे । पर उनके व्यक्तित्व ने उनकी सत्ता को अलग-अलग मुखौटा पहना दिया ।
व्यक्तित्व जीवन की आभा है । बड़ी-बड़ी महिमाएँ भरी हुई हैं इसमें। अन्तर-शक्तियों का उद्रेक है यह । यदि व्यक्तित्व ऊर्ध्वगामी बन जाए तो वह राम रूप है । यदि वह अधोगामी बन जाए तो रावण के कर्तृत्व आते हैं।
संसार का इतिहास बहुत लम्बा-चौड़ा है । पता नहीं, आज तक कितने व्यक्तित्व उभरे हैं और कितने डूबे हैं । उभरने वाले व्यक्तित्व सदियों के बाद भी उभरे हुए ही हैं । उभरने वाले व्यक्तित्वों की संख्या कोई बहुत ज्यादा नहीं है । मानव-मन का यह एक स्वभाव है कि उसमें अच्छाई कम और बुराई ज्यादा होती है । इसलिए अच्छे लोग कम होते हैं और बुरे लोग ज्यादा । राम, कृष्ण, महावीर, गौतम और ईसा जैसे व्यक्तित्व कोई बहुत ज्यादा नहीं हुए हैं । रावण, कंस, शिशुपाल, ओरंगजेब, चंगेज खाँ, नादिरशाह और हिटलर जैसे लोगों की संख्या गिनने जाओ तो सीमा भी नहीं आएगी । क्या हम ऐसे व्यक्तित्व पर कभी गर्व कर सकते हैं, जिसने जिन्दगी-भर विनाश-लीलाएँ रची, संसार में प्रलय मचाया, शान्ति और सुखद जीवन को दर-दर का भिखारी बनाया ? मानव-जाति उन व्यक्तियों को कभी भी माफ नहीं करेगी । उन लोगों की मर्मान्तक तबाहियों का लेखा-जोखा एक दो नहीं, सैकड़ों ग्रन्थों में भी नहीं
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