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संबोधि का कारण
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बज उठेगी, मगर उस रणभेरी को वही समझ सकेगा, जो सार तत्त्व को पाने की, गुण- ग्राहकता की हैसियत रखता होगा ।
'वज्रज्रेख' के बारे में प्रसिद्ध है कि वह काफी बलवान हाथी था । सौ वीर योद्धा भी उसके आगे नहीं टिक सकते थे । वह कौशल नरेश का हाथी था । अनेक युद्धों में उसने कौशल दिखाया था । एक सीमा के बाद तो सभी बूढ़े होते हैं । किसी बूढ़े व्यक्ति को लाठी का सहारा लेकर चलते देखकर उस पर हँसना मत । किसी की अर्थी देखकर दया मत खाना । अपने भीतर जागना है । शाम ढल गई है । नींद पूरी हो गई है । एक दिन तो ऐसा भी आएगा, जब जीवन के चारों ओर अन्धकार छा जाएगा ।
जिसे आप मौत कहते हैं । वह यही अन्धकार है । यह अन्धकार रोज-ब-रोज आता है और एक दिन आदमी महाअन्धकार में डूब जाता है । वह हाथी भी अब बूढ़ा हो चला था । उसकी हालत देखकर हर आदमी सोचने लगा कि अब यह बूढ़ा हो गया है। उस हाथी के प्रति सब लोगों के मन में सम्मान था । वह हाथी भी बड़ा जीवट वाला था ।
एक दिन वज्ररेख घूमते-घूमते शहर के बाहर एक तालाब के किनारे पहुँच गया । तालाब में पानी काफी कम हो गया था और दलदल - सा बन गया था । बुढ़ापे के कारण हाथी की आँखें भी कमजोर हो चुकी थीं । उसने पानी पीने के लिए कदम आगे बढ़ाए तो दलदल में फंस गया । अब वह दलदल से निकलने का जितना प्रयास करता, उतना ही और अन्दर धंसता जाता । लोग एकत्र होने लगे । उसे बाहर निकालने के कई प्रयास किये गये, मगर सफलता नहीं मिली । कौशल - नरेश भी वहाँ पहुँच गये और भरी आँखों से हाथी को मरता देखने लगे । उस बलवान हाथी का ऐसा अन्त उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था । एकाएक उन्हें अपने पुराने महावत की याद आई । शायद वह कोई रास्ता सुझा दे । महावत आया । हाथी को देख मुस्कुराया, बोला- 'आप लोग इस हाथी को नहीं जानते' । उसने तत्काल आदेश दिया कि रणभेरी बजाई जाए । इधर रणभेरी बजी, उधर हाथी के बेजान शरीर में हलचल मची । हाथी ने अपनी सारी शक्ति एकत्र की और दलदल से बाहर निकल आया ।
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