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चलें, मन-के-पार लगी तो तत्काल इस खोपड़ी पर नजर पड़ी और मेरे अन्तर्मन में झंकार हुई । मुझे विचार आया कि 'च्वान सूं ! तेरी खोपड़ी की भी यही हालत होने वाली है' । यह खोपड़ी भी किसी साधारण आदमी की होती तो और बात थी, मगर यह खोपड़ी इस देश के सम्राट की है । जब एक सम्राट की खोपड़ी को आम आदमी ठोकर मार सकता है, तो जरा सोचो अपनी स्वयं की खोपड़ी का क्या हस्र होगा । मैंने इसलिए इसे प्रणाम किया कि 'च्वान सुं ! तेरी भी हालत यही होने वाली है' इस खोपड़ी ने मुझे यह अहसास कराया है ।
___ कहते हैं च्वान सूं ने उस खोपड़ी को उस दिन के बाद हमेशा अपने पास रखा । लोग पूछते तो वे कहते- 'यह खोपड़ी मेरी गुरु है ।' इस
खोपड़ी को देखता हूँ तो मुझे यह बोध होता है कि मेरी हालत भी एक दिन ऐसी होने वाली है । इसने मुझे प्रेरणा दी है । इसलिए यह मेरी
यह घटना तो केवल प्रतीक है । असल में मैं कहना यह चाहता हूँ कि जीवन में जो कुछ घटता है, आदमी उससे सीखे । आदमी अपने ही नहीं, दूसरों के अनुभव से भी सीखे । एक आदमी तो वह होता है जो अपने अनुभव बेकार जाने देता है । दूसरा ऐसा है जो उन्हें बटोरता है । उसकी माला बनाता है । तीसरा, वह जो बुद्धि से काम करता है । मैं ऐसे आदमी को प्रज्ञावान मानता हूँ, जो बुद्धि से भी पार चलता है । असल में फूलों को बटोरना जरूरी है । उसकी माला बनानी है । फूल तो मुरझाने वाले हैं । प्रज्ञावान तो वह है जो मुरझाने से पहले उनकी माला बना लेता है । फूल मुरझाने से पहले ही वह सार-तत्त्व को पा लेता है । फूलों का सार तो इत्र है । जिसने इत्र बटोर लिया, उसने ज्ञान पा लिया । जिसने केवल फूल ही बटोरे, वह अन्धेरे में ही रहा । उसने सार तो छोड़ ही दिया । अनुभव बटोरना ही काफी नहीं है, सार तत्त्व भी बटोरना है । जिसने सार पा लिया, उसने जीवन का वास्तविक मूल्य आत्मसात् कर लिया ।
दुनिया भर का स्वाध्याय-अध्ययन करने के बाद, पाण्डित्य पाने के बाद भी लगता है कि जीवन में मौलिकता यही है कि आदमी अपने चारों तरफ बिखरे सत्यों को भी समझे । भगवान तो पुकारेंगे । रणभेरी तो
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