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जलती रहे मशाल
६६ जो व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को भारमुक्त और स्वस्थ करना चाहता है, उसे अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए कुछ करना होगा । करने के लिए जोश जरूरी है, मगर सोडावाटरी उफान भरा जोश काम नहीं देगा । समुद्र की लहरों की तरह निरन्तर जोश रहेगा, तभी व्यक्तित्व-विकास हो सकेगा।
हम सब व्यक्ति हैं । व्यक्तित्व हमारी चाँदनी है । हमें अपने व्यक्तित्व के विकास एवं स्वातन्त्र्य में किसी तरह का न तो शक रहना चाहिए और न किसी तरह का डर । निःसंशयशीलता और निर्भयता व्यक्तित्व-विकास की पहली सीढ़ी है । व्यक्तित्व-विकास के लिए व्यक्ति को निरन्तर कर्मयोगी बनना पड़ेगा । उसका काम कर्म करना है, उसके फल की आशा सँजोए रहना नहीं है । स्वार्थ एवं चाह की चाय-की-लत छोड़ने से ही व्यक्तित्व में लोक-कल्याणी स्रोत उभरेंगे । व्यक्तित्व के विकास के लिए हमें न तो अपनी डींगें हाँकनी चाहिये और न ही अपनी भलाई करने वाले के साथ बुराई करनी चाहिये । यदि स्वयं से कोई अपराध हो जाये, या खुद की कोई कमी हो तो उसे दूसरों के समक्ष रख दें, किन्तु औरों की बुराइयों का ढिंढोरा न पीटें । जो व्यक्ति औरों को एक अंगुली दिखाता है, तो उसकी स्वयं की ओर तीन अंगुलियाँ आएँगी । दूसरों के दोष-दर्शन से अपने व्यक्तित्व को लाभ नहीं है । पर यदि कोई व्यक्ति अपने उज्ज्वलं व्यक्तित्व से पथ-च्युत होता हुआ लगे तो हमें उसे समझाना चाहिये, गिरते हुए को उठाना चाहिये । व्यक्ति को चाहिये कि वह किसी से घृणा न करे । मानवता के प्रति उसके मन में सम्मान रहना चाहिये । बीमारों की सेवा करने में और दुःखियों को सुख देने में उसे आनन्द महसूस करना चाहिये ।
हमारा व्यक्तित्व हमारे जीवन की बहुमूल्य सम्पत्ति है । इसे हम ही उपार्जित कर सकते हैं । यह काम किसी प्रतिनिधि के हाथों नहीं हो सकता । हमारे मन में अपने व्यक्तित्व के प्रति आस्था होनी चाहिये । हमें अपने कृतित्व को किसी की गुलामी में नहीं रखना है । यदि कोई ऐसी बात भी कहे तो हमें उसके प्रति अपना स्वाभिमान जागरूक रखना चाहिये । कोई हमें कितना भी बड़ा लालच दे, पर जब हमारे लिए हमारा व्यक्तित्व ही सर्वोच्च मूल्यवान् होगा, तभी हमारा व्यक्तित्व संसार के लिए
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