________________
११२
चलें, मन-के-पार के कारण पेड़ के पते नहीं झूमेंगे वरन् अपनी जीवन्तता के कारण झूमेंगे । अपने बनाये या किराये पर लिये हुए उधार खाते के विकल्पों से ऊपर उठे । जितना देखा और जितना जाना, उसका सागर-मंथन करें और फिर सार को गही रहें और थोथा को फूंक मारें ।
चित्त की एक और कही जा सकने वाली वृत्ति है, और वह है मूर्छा । पतंजलि जिसे निद्रा कहते हैं, वही मूर्छा है । मूर्छा बेहोशी है । बेहोशी में किया गया पुण्य भी पाप का कारण बन सकता है और होशपूर्वक किया गया पाप भी पुण्य की भूमिका का निर्माण कर सकता है । प्रश्न न तो पाप का है, न पुण्य का । महत्त्व सिर्फ होश और जागरूकता का है । जहां जागरूकता है, वहां चैतन्य की पहल है । यह जागरूकता ही 'यतना' है, यही विवेक है और यही सम्बोधि है । जागृति धर्म है और निद्रा अधर्म । धार्मिक जगे; क्योंकि उसका जगना ही श्रेयस्कर है । भगवान अधर्मियों को सदा सोये रखे, क्योंकि इसी में विश्व का कल्याण है । जिस दिन अधार्मिक जगा, उस दिन खुदा की नींद भी हराम हो जाएगी और यह कहते हुए खुद विधाता को धरती पर आना होगा
यदा-यदा हि धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य, तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
इसलिए आत्म-जागरण ही धर्म का प्रास्ताविक है और यही ध्यान-योग का उपसंहार भी । जहां सम्राट भरत और नरेश जनक जैसी अनासक्ति तथा अन्तर्जागरूकता है, वहाँ गृहस्थ-जीवन में भी सन्यास के शिखर चरण-चेरे बन जाते हैं ।
चित्त की एक और वृत्ति है स्मृति । यही तो वह वृत्ति है, जिसके कारण जीवन का अध्यात्म पेंडुलम की तरह अधर में लटका रहता है । जीवन वर्तमान है, पर जो लोग जीवन को स्मृति के कटघरे में खड़ा रखते हैं, वे या तो अतीत के अन्धे कूप में गिरे रह कर काले पानी में गल-सड़ जाते हैं और या फिर भविष्य के अन्तरिक्ष में कल्पनाओं के धक्के के कारण अनरुके चक्कर लगाते रहते हैं ।
शाश्वतता तो न केवल अतीत और भविष्य से अपना अलग अस्तित्व
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org