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वृत्ति : बोध और निरोध
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रखती है, अपितु वर्तमान की चुगलखोरी से भी मुक्त है । अतीत, वर्तमान या भविष्य जैसे शब्द शाश्वतता के शब्द कोष में नहीं आते । उसके साथ न कभी 'था' का प्रयोग होता है और न कभी 'गा' का । उसके लिए तो सिर्फ 'है' का प्रयोग होता है । अतीत में भी और भविष्य में भी ।
चित्त की वृत्तियाँ चंचल हैं । लक्ष्मी की तरह नहीं, अपितु लक्ष्मी से भी ज्यादा चंचल हैं । मौसम की तरह नहीं, अपितु मौसम से भी बढ़कर । तुम देख रहे हो सागर की तरंगें और मैं देख रहा हूँ हवा की लहरें, पर कभी-कभी ऐसा लगता है कि चित्त का अश्व हवा से भी ज्यादा खूँदी करता है । 'अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः ।' किन्तु अभ्यास और वैराग्य से चित्त की वृत्तियों का निरोध संभव है । चित्त की स्थिरता के लिए प्रयत्न करना अभ्यास है तथा देखे और सुने हुए विषयों का उपभोक्ता होने के बजाय दृष्टा हो जाना, उन्हें पाने की आशा और स्मृति से रहित हो जाना वैराग्य है ।
जहाँ वैराग्य है और अभ्यास भी है, वहाँ योग के अन्तर-द्वार स्वतः उघड़ने लगते हैं । आइये वहाँ तक चलें, क्योंकि वहाँ हमारी प्रतीक्षा है ।
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