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चलें, मन-के-पार
१०० आदर्श बन पाएगा ।
__ हमारे मन में सबके प्रति भाईचारे का, प्रेम का व्यवहार होना चाहिये । यदि हम सबसे वैसा रिश्ता जोड़ सकें जो गाय और बछड़े के बीच रहता है, तो हमारे व्यक्तित्व में कामधेनु अपना अमृत दूहेगी । केवल अपने ही व्यक्तित्व के प्रति नहीं, अपितु सारे समाज एवं विश्व के प्रति भी गौर रखना चाहिये । जिससे सूरजमुखी फूल की तरह हमारा व्यक्तित्व भी खिला-खिला, महका-महका रहे, इसी में हमारे व्यक्तित्व की विशेषता है ।
__हमारा व्यक्तित्व ऐसा बन जाये कि अनायास प्रभावना हो । हमारे पहुँचते ही सारा वातावरण संगीतमय बन जाये । झूमने लग जाये पेड़ों की पत्तियाँ, बज उठे प्रेम की पायजेबें । हमें अपने व्यक्तित्व को इतना प्रभावक बना लेना चाहिये कि हमारे बिना समाज स्वयं को रीता समझे । हमें कूप-मण्डूकता से बाहर आना पड़ेगा । पारिवारिकता का कुआ ही सर्वस्व नहीं है । वैसे कुए तो दुनिया में कदम-कदम पर हैं । कदम रखें कुएँ के बाहर तो पता लगेगा कि और भी कहीं संगीत उमड़ता है, व्यक्तित्व को उजागर करने के और भी पगथिये हैं । भगवान् महावीर उन पगथियों को गुणस्थान-सोपान कहते हैं । पगथिये भी ऐसे हैं जो ब्रह्माण्ड के चारों कोनों में हैं । ये खुद को ऊपर चढ़ाएँगे, पर खुदी का खात्मा कर देंगे । उसमें स्वार्थ की दीवारें टूट जाएंगी, मोह की मीनारें ढह जाएंगी। यदि कुछ रहेगा तो वह है खुद का व्यक्तित्व, जिसमें जगती रहेगी निधूम ज्योति ।
सामान्यतया दुनिया में जड़ व्यक्तित्व अधिक होते हैं । वे इतने मूढ़ होते हैं, मूर्खता के गुलाम होते हैं, कि वे गोबर के गणेश बने रह जाते हैं । गोबर-गणेश यानी जड़ बुद्धि, महामूर्ख । ऐसे लोग अपने व्यक्तित्व के विकास के बारे में पहल नहीं करते ।।
बहुत से व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो अपने व्यक्तित्व को ऊँचा उठाने के लिए, उसे एवरेस्ट तक चढ़ाने के लिए मेहनत कई बार करते हैं, पर उन्हें सफलता नहीं मिल पाती है । यह रास्ता तो सचमुच काई-भरा है, फिसलन-भरा है ।
व्यक्तित्व-विकास के यात्री प्रायः ढुलमुल यकीन वाले होते हैं । वे व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए कदम तो मंजिल की ओर बढ़ाते हैं,
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