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जलती रहे मशाल
विश्व सागर की तरह विराट् है । इसमें भिन्न-भिन्न रूप वाले व्यक्ति हैं । एक रूप के दो व्यक्ति नहीं होते हैं । प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है । यद्यपि करोड़ों लोगों की आँख नाक, मुँह, कान, हाथ, पैर आदि सब समान हैं । पर. समान होते हुए भी हमशक्ल कोई भी नहीं है । कुछ-न-कुछ बदलाव जरूर मिल जाएगा । कभी-कभी जुड़वे लोगों में थोड़ी एकरूपता नजर आती है, फिर भी गौर से देखने पर दोनों में भेद स्पष्ट हो जाता है । 'गिनेज बुक ऑफ रिकार्डस्' में जुड़वे बच्चों का जो विश्व-रिकार्ड आँका गया है, वह है एक साथ एक माँ के पेट से छह बच्चों का जनमना । गहराई से देखते हैं तो छह-के-छह बच्चों में भेद की रेखाएँ शीशे की तरह साफ-साफ झलकती दिखाई देती हैं । जब रूप की यह बात, तो वाणी और कर्म में तो और ज्यादा भिन्नता होगी । इतनी भिन्नता होगी, मानो बीच में लक्ष्मण-रेखाएँ खींची हों । मुर्गे की कुकडु-कू को सुनकर आप यह पहचान नहीं सकते कि यह किस मुर्गे की आवाज है । किसी डाल पर दो कोयलें बैठी हों, और उनमें एक कूक उठे, तो क्या आप पहचान लेगें कि यह किस कोयल की आवाज है ? लेकिन व्यक्ति इसका अपवाद है । प्रकृति ने यह विकल्प बनाया है । जब रिकार्ड बजता है, तो आप कह उठते हैं यह तो लता की आवाज है कि मुकेश या किशोर के बोल हैं । आवाज तो आवाज है । पैर की ध्वनि सुनते ही आप समझ जाते हैं कि यह अमुक आदमी है । दरवाजे की खटखटाहट सुनकर भी आप पहचान जाते हैं कि कौन खटखटा रहा है ।
मनुष्य के रूप और गुण-धर्म में बुनियादी फर्क है । फलस्वरूप व्यक्ति का व्यक्तित्व भी विशेषता लिये होता है । प्रत्येक व्यक्ति का अपना व्यक्तित्व होता है । मनुष्य का व्यक्तित्व स्थायी नहीं होता । प्रयास से उसमें विकास
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