________________
खोलें, अन्तर के पट
८७
में देह-राग से ऊपर उठने के लिए है । काश, मनुष्य आत्म-समीकरण के लिए जीवन का कोई संपादन करता ।
आत्म-ऊर्जा से अभिप्राय है हमारे जीवन की मौलिकता, अस्तित्व की वास्तविकता । अदृश्य या सूक्ष्म कहकर उसे नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता । सम्भव है, किसी की नजरों में परमाणु का कोई मूल्य न हो, परन्तु एक परमाणु में हिरोशिमा की भाग्य रेखा खींची हो सकती है । सागर को एक बूँद में चखा जा सकता है । परमात्मा विराट है, तुम बूँद हो । जो बूँद को चख लेता है, सागर उससे छिपा नहीं रह पाता ।
हम सघन ऊर्जा के धारक हैं । आत्म-ऊर्जा की सशक्तता को चुनौती नहीं दी जा सकती । उससे प्यार किया जा सकता है, उसमें निमग्न होकर स्वयं को विराट किया जा सकता है। दूसरों से प्यार खूब हुआ, चुम्मा-चुम्मा, तम्मा तम्मा भी खूब गाया - किया, पर हर बार प्यार प्रवंचना बना । वह व्यक्ति 'महामानव' है, जो स्वयं से प्यार करता है । स्वयं से प्यार करने वाला कभी किसी के प्रति वैमनस्य नहीं रख सकता, परन्तु दूसरों से ही प्रेम का सम्बन्ध जोड़ने वाला कदम-दर-कदम विषाणुओं से घिरा है । महत्त्व जीवन- प्रेम का है ।
कृपया स्वयं से भी जुड़ें और आत्म- घनत्व को मूल्य दें । मनुष्य बीज रूप है । बीज यदि बीज ही बना रहे, तो उसके अस्तित्व का आत्म-विस्तार कहाँ हो पाएगा ! बीज में भूमा सम्भावनाएँ हैं; खेद है वह अपनी इस ओजस्विता से अपिरिचित है । जिस दिन उसे अहसास होगा स्वयं की अन्तर्गर्भित सम्भावना का, वह परमात्मा की कृषि-धरा को समर्पित कर देगा खुद को, ताकि अपने आपको हरा-भरा कर सके, बाँहों को बुलन्द जोश / होश के साथ फैलाकर स्वयं की जीवन्तता को उद्घाटित कर सके ।
बीज में अनन्त का आलिंगन भरती सम्भावनाएँ जरूर हैं, पर वह अपनी सम्भावना को शायद देख नहीं पाता । मनुष्य भी बीज रूप है, परन्तु वह अपने भीतर झांक सकता है । अन्तर्-घर में सतत् झांकना स्वयं की अनखिली संभावनाओं का निरीक्षण है । अपने भीतर की ओर झांकना ही तो आत्म-भावना से साक्षात्कार की पहल है । जिज्ञासापूर्वक भीतर झांकना
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org