________________
खोलें, अन्तर के पट
मनुष्य ऊर्जा का संवाहक है । ऊर्जा का त्रिकोणात्मक सम्मेलन हुआ है उसमें । पहली ऊर्जा है- देह-ऊर्जा, दूसरी है प्राण-ऊर्जा और तीसरी है आत्म-ऊर्जा । पहली ऊर्जा स्थूल है, दूसरी पहली की अपेक्षा सूक्ष्म है और तीसरी दूसरी से सूक्ष्मतर है ।
आत्म-ऊर्जा की अस्मिता सर्वाधिक सूक्ष्म है । वह पहली और दूसरी ऊर्जा से भी अधिक सशक्त है । सच्चाई तो यह बयान करती है कि आत्म-ऊर्जा के कारण ही देह-ऊर्जा और प्राण-ऊर्जा का अस्तित्व होता है । आत्म-ऊर्जा-संवाही अंश न केवल मनुष्य-शरीर में, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में परिव्याप्त है ।
देह-ऊर्जा का अनुभव प्रत्येक मनुष्य को है । शरीर के हर भाग-विभाग को छूकर देखकर जाना-पहचाना जा सकता है । मनुष्य देह-ऊर्जा का उपयोग भी कसकर करता है । प्राण-ऊर्जा सहजतया गतिशील है । जरा श्वास-स्पर्श का अनुभव करो । श्वांस ही तो प्राण है । कोई भी मिनट ऐसा नहीं होता कि श्वांस रुकी-थमी हो | यह ऊर्जा की हवाई भूमिका है । जीवन श्वांस ऊर्जा का नाम नहीं है । जीवन तो श्वास-ऊर्जा के भी पार है । श्वाँस तो जीवन की मात्र अभिव्यक्ति है ।
योगी जीवन जीते हैं । वे श्वांस को रोक भी सकते हैं । प्राणायाम की प्रक्रिया में 'कुम्भक' श्वांस को रोकना है और आश्चर्य यह है कि श्वांस रुकने के बाद भी मनुष्य जीवित रहता है । यदि अभ्यास करें, तो यह प्रयोग हर कोई कर सकता है । कई योगी, संन्यासी, फकीर जमीन में समाधि ले लेते हैं और काफी समय तक वे उसमें रह लेते हैं । वे वास्तव में जान लेते हैं कि जीवन का रहस्य क्या है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org