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चलें, मन-के-पार ... तेरो तेरे पास है, अपने मांही टटोल,
राई घटै ना तिल बढ़े, हरि बोलौ हरि बोल ।
शब्द बड़े सुलझे हुए हैं । तुम्हारा तुम्हारे आस-पास, टटोल सको स्वयं में काश । आखिर हमारी परछाई हमारे इर्द-गिर्द ही होगी, हमसे सौ कोस दूर नहीं । उस आदमी को आप क्या कहेंगे जिसका पर्स जेब में है
और उसकी खोज में आदमी जा रहा है पुलिस थाने में । स्वयं की आँखों की रोशनी बाहर से जुड़ी है, इसलिए आदमी पहल भी बाहर की खोज में ही कर रहा है । बाहर की रोशनी तो किसी और की है, तुम्हारी रोशनी तो स्वयं तुमसे ही जुड़ी है । उसकी सम्भावना तो स्वयं तुममें ही है । जब मेरी सम्भावना मुझसे जुड़ी है तो उसकी तलाश कहीं और क्यों ? हरि तुम हो । जरा प्रेम से स्वयं को पुकारो तो सही । स्वयं की मौलिकताओं से प्रेम करना ही तो अध्यात्म-जगत से साक्षात्कार है ।
एक बात और है : केवल हरि-हरि का नाम लेने से भी काम चलने वाला नहीं है । कहने से हरि नहीं मिलता, कुछ करने से हरि मिलता है । जप-जप करने से जप नहीं होता, बल्कि होने से जप होता है । आपको मालूम है कि हरि का अर्थ क्या होता है ? लोग सोचते हैं हरि का मतलब भगवान होगा । नहीं ! हरि का अर्थ भगवान नहीं होता । भगवान तो आमन्त्रित अर्थ है । जैनी अरिहंत को पूजते हैं । समझते हैं यह ही भगवान है । अरे, इनके अर्थ तो बड़े विचित्र हैं । हरि का अर्थ होता है- हरण करने वाला । लुटेरे का क्या काम है हड़पना । हरि का काम है हरण करना । जो हरण करता है, वही हरि है । मनुष्य में जहाँ-जहाँ कमजोरियां हैं, अवगुण हैं, उन्हें जो हरता है, वह हरि है । अरिहंत का अर्थ है- मारने वाला | किसे मारना है, कपड़े कूटेगा ? शत्रुओं को जीतने वाला, पता नहीं कौन-से हिटलर को जीतने निकला है ? कौन-से नेपोलियन को जीतना है ? यही तो सब अर्थ होते हैं जिनकी तह में जाने पर ही पहचान होती है । ये अर्थ दबे पड़े हैं अन्दर | गहराइयों में जाने पर ही इनकी पहचान होगी । इन अर्थों को ढूंढ़ना पड़ेगा ।
आत्मविजयी अरिहंत है । वही हमारा हरि है जो हमारे अवगुणों
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