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की प्रक्रिया । जो स्वयं में लौटा, वह अपने धन से धनवान बना । समाधि उस धनवत्ता का ही दूसरा नाम है ।
ध्यान अगर स्वयं में लवलीन होने में सार्थक हो जाए तो जीवन के द्वार पर कैवल्य की दस्तक हो सकती है । कैवल्य का अर्थ है स्वयं की पहचान । ध्यान इस सारे परिवेश में प्रवेश करने के लिए आधार है । स्वयं में प्रवेश ही धर्म है और ध्यान धर्म की कुंजी है । ध्यान ही धर्म का सार है । यों समझिये कि धर्म का जन्म ही ध्यान है ।
ध्यान का पहला सूत्र है स्वयं के प्रति जिज्ञासा । दूसरा सूत्र है स्वयं की स्वीकृति । तीसरा सूत्र है स्वयं में डुबकी ।
दुनिया में ध्यान की जितनी भी परम्पराएँ विकसित हुई हैं, ये तीन सूत्र उनका प्रथम अध्याय भी हैं और ध्यान के सम्पूर्ण विस्तार का उपसंहार भी ।
___ आदमी की जिन्दगी अपरिचितों से मिलने में, दो-चार किताबों को पढ़ने में खत्म हुई जा रही है । दूसरे की मौत आपके लिए चुनौती है । जीवन बूँद-बूँद रिसता जा रहा है | जीवन मिटे, उससे पहले जीवन को बना लेना चाहिए, नश्वरता में छिपे शाश्वतता को बटोर लेना चाहिए । आखिर जाना अकेला है । सारे सम्बन्धों को छोड़कर जाना है । काश! जीते-जी अकेलेपन का बोध प्रगट कर लो । सम्बन्ध संसार है और अकेलापन संन्यास है । मेरी पुकार उसी संन्यास के लिए है । निर्लिप्त कर लो स्वयं को, जल में कमल की तरह । ध्यान आपकी इसमें मदद करेगा | भरपूर मदद लो । सूर्य तुम्हें खिलाने के लिए आसमान में उभरने वाला है । ध्यानमय संकल्पों के साथ समर्पित हो जाओ अपने अन्तर-कमल को कीचड़ से बाहर निकालने के लिए, ताकि सूरज अपनी किरणों से खिला सके कमल की पंखुड़ियाँ । ऐसा होना ही अनन्त-से-साक्षात्कार है ।
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