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चलें, मन-के-पार एक अच्छा शब्द है- व्रत । व्रत का मतलब होता है अलग हो जाना । उस चीज से अलग हो जाना, जिसका परिणाम संसार के दुःख से जुड़ा हो । लोगों ने व्रत को बाँट दिया है । कहते हैं एक होता है अणुव्रत और दूसरा महाव्रत । अणुव्रत का मतलब होता है त्यागा भी, भोगा भी । भोगते समय थोड़ा-सा त्यागना अणुव्रत है । महाव्रत भोग से पूरा अलगाव है । व्रत हमेशा महाव्रत ही होता है । यदि भोगने के भाब शेष हैं तो व्रत अपने मायने में पूरा हुआ ही नहीं । व्रत है, तृष्णा-से-विमुक्ति । मैं आपसे कहूँगा कि अणुव्रत में विश्वास उतना मत करना, जितना महाव्रत में । मेरी समझ से तो अणुव्रत मात्र व्यक्ति को फुसलाना है । जिन्दगी में क्रांति घटित होनी चाहिए । या तो इस पार या उस पार । या तो पूरी तरह चोर बनो या पूरी तरह ईमानदार बनो । यह बीच का कौन-सा रास्ता अपनाया जा रहा है । बाहर तो आदमी ईमानदार बना हुआ है और भीतर दरवाजे के अन्दर बन्द होकर घालमेल की जा रही है ।
आदमी की जिन्दगी खुली किताब होनी चाहिए । हथेली की तरह बिल्कुल साफ और सपाट । जो भी है, वह ईमानदारी के साथ है । जिन्दगी या तो इस तरफ बढ़े या उस तरफ । बीच के रास्ते पर अपने आपको मत डालिएगा | आदमी सिगरेट छोड़ता है । जरा ध्यान दीजिए । एक आदमी दिन में बीस सिगरेट पीता है । वह कहता है कि आज से मैंने पाँच सिगरेट कम कर दी है । वह अणुव्रती हो गया । पता नहीं अणुव्रत का उसका अनुशासन कैसा है । पाँच सिगरेट कम कर दी, मगर पन्द्रह तो पी ही रहे हो । सिगरेट पीने की तृष्णा और खुमारी तो अभी शेष है । या तो बीस ही पियो या फिर पूरी तरह छोड़ दो । थोड़ा-थोड़ा करके छोड़ा तो क्या छोड़ा ! थोड़े की बणिया-बुद्धि लगाने की चेष्टा न करो ।
कण-कण से, बूंद-बूंद से घड़ा भरता है, यह सोचा तो घड़ा भरने तक जिन्दगी ही बीत जाएगी, फिर भी घड़ा भर पाएगा या नहीं, यह तय नहीं है । इसलिए अपना घड़ा समग्रता के साथ भर लो । धूम्रपान छोड़ना है तो एक साथ छोड़ दो। आदमी डरता भी है और पीना भी चाहता
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