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वर्तमान की विपश्यना तुम हो, जो सिर्फ अतीत के बारे में सोचते रहते हो । अतीत को अगर जानोगे भी, तो भी कितना ! जानकर भी अनजान ही रह जाओगे ।
भविष्य अतीत से कम नहीं है । भविष्य अक्सर अतीत का ही प्रतिबिम्ब होता है । भविष्य अतीत की पुनरावृत्ति है, अतीत की पोथी का पुनर्संस्करण है । फिर भी, भविष्य को कोई नहीं जान सकता । भविष्य के लिए सिर्फ कल्पनाएँ की जा सकती हैं, या अधरों के आश्वासन दिये जा सकते हैं । इस बात से कोई अपरिचित नहीं है कि कल्पनाएँ मन-की-मक्खियाँ हैं और भिनभिनाते रहना मक्खियों-का-स्वभाव है ।
मनुष्य की स्थिति तो इस कदर है कि वह सौ को पाने के चक्कर में निन्यानवें को ठुकरा रहा है । हम जिएँ समय की उठापटक से कुछ उपरत होकर । वर्तमान का द्रष्टा ज्योति बुझने से पहले उसकी रोशनी में जीवन-सम्पदा को ढूँढ निकालने में कामयाब हो जाता है ।
यदि हम अतीत हो सकें, न केवल अतीत और भविष्य से, बल्कि वर्तमान से भी, तो हम वह न रहेंगे, जो आमतौर पर जन्म-मरण के बीच धक्का खाते जीता है । हम शाश्वत रहेंगे- समय की हर सीमा के
पार ।
हम शाश्वत बन सकते हैं, इसीलिए कह रहा हैं । हमारे पास. प्राणिमात्र के पास ऐसी क्षमता है । बीज ! तुम फूल बन सकते हो । फूल खिलेगा अपने निजत्व से । डूबो अपनी समग्र निजता में ।
___ तुम अतीत की फिक्र मत करो । अतीत यानि जो हो चुका । धारा बह गई । जो हो गया, सो हो गया । चाहे वह अच्छा हुआ या बुरा, जो गोली बन्दूक से निकल चुकी, उसके बारे में क्या सोचना !
बीत गई सो बात गई, तकदीर का शिकवा कौन करे ! जो तीर कमां से निकल गया, उस तीर का पीछा कौन करे !
जो बीत गया, सो अतीत है । मनीषियों की सलाह है- बीती ताहि बिसार दे । जो हो रहा है उसका तहेदिल से स्वागत करें । जो मिला है, वह स्वीकार्य है । सम्भवं है, प्राप्त चीजें हमें परितुष्ट न कर पायें, पर
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