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चलें, मन-के-पार होगा, जब तक वृत्तिशून्य न बनोमे । यदि प्रवृत्ति निरुद्ध भी हो गई, तो यह जरूरी नहीं है कि वृत्ति भी समाप्त हो गई । अनेक लोग प्रवृत्तियों की आपाधापी से तंग आकर संन्यास का बुरका ओढ़ लेते हैं । वे जंगलों
और गुफाओं में भी चले जाते हैं । भीड़ से बचकर गुफाओं में चले गये, परन्तु भीड़ छोड़कर भी अपने साथ विचारों में भीड़ को साथ लिए फिर रहे हो । बाजार की भीड़ का क्या ? आँख बन्द कर लो, भीड़ में भी एकान्त हो गया ।
मनुष्य की खोपड़ी छोटी-सी है । पर इसमें पूरा बाजार बसा हुआ है । विचारों की न जाने कितनी दुकानें इसमें खुली हुई हैं । हर दुकान पर नया माल है । यदि इस बाजार को बारीकी से निहारोगे, तो चकरा उठोगे | दुकानों को ध्यान पूर्वक देखो, न-कामी दुकानों के सटर गिरा दो । दुकानों की संख्या कम हो जायेगी । कृपया जीवन के गुलिस्तां को इस कदर बरबाद न होने दो ।
एक ही उल्लू काफी है, बरबाद गुलिस्तां करने को । हर डाल पर उल्लू बैठा है, अंजामें गुलिस्तां क्या होगा ?
खोपड़ी हमने इतनी भर रखी है कि एक विचार को दूसरे विचार से मिलने की फुरसत नहीं । सारे विचार एक-दूसरे के विरोधी; विचारों की भीड़ इस कदर की सांस लेना भी मुश्किल; जरा मेहरबानी कर शून्य करो स्वयं को, वरना उमस और घुटन में जीना मुश्किल हो जाएगा । पता है 'हार्ट अटेक' क्यों होता है ? इसी वैचारिक घुटन के कारण, परस्पर विरोधी विचारों के बोझ के कारण ।
बोझ हल्का करो । यदि स्थान, परिवेश या और कुछ बदलना उपयोगी लगे, तो कोई हर्जा नहीं, पर भीतर का भार नीचे गिर जाना चाहिए । बोझा हटना ही मोक्ष है । निर्वाण पाना निर्धार होना है ।
वृत्तियों से मुक्त होने के लिए मात्र वनवास नहीं है, वृत्तियों की निरर्थकता का बोध उपादेय है । संन्यास लो, पर संन्यास की पूर्व भूमिका तो पहले तैयार कर लो । महावीर ने गृहस्थ-वर्ग में एक स्नातक कोटि बनाई 'श्रावक' की । घर में बच्चा पैदा हुआ कि हम कहने लग गये एक
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