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चलें, मन-के-पार हो कि तुम्हें परमात्मा ने याद किया है, उसकी दिव्यताएँ तुम्हारे नजदीक आ रही हैं । तुम्हारा परमात्मा / परम रूप तुम्हारे निकट से निकटतम है । तुम स्वयं में एक सृष्टि हो और स्रष्टा अपनी सृष्टि में लगा हुआ है।
__ तुम एक सम्पूर्ण अस्तित्व हो । अणु कहकर उसकी अवमानना मत करो । हर अणु अपने आप में पूर्ण है । अणु संसार की सबसे छोटी इकाई है, पर प्रत्येक इकाई आकण्ठ आपूर्ण है । अणु में ही नागासाकी का इतिहास लिखा है । उसकी सम्भावना और सामर्थ्य को यों पांवों से कृपया मत ठुकराओ।
अणु तो सिर्फ इकाई है । मनुष्य के भीतर अनन्त अणुओं जैसी ऊर्जा सम्भावित है। बीज से बरगद का तरुवर फैला है अपनी अनगिनत भुजाओं के साथ । जरा देखो एक बीज ने कितने बीज पैदा कर दिये हैं । अगर बरगद का एक फल देखोगे तो पाओगे कि एक फल में सैंकड़ों बीज छिपे हैं । बरगद फलों से फला है। मनुष्य एक नहीं, अनन्त बीजों का स्रोत है । पहचानें अपनी शक्तियों को, जगाएँ खाट पे आराम से सोयी ऊर्जा को ।
__मनुष्य माटी का दीया है । सिर्फ दीया ही नहीं, ज्योति-शिखा भी है । शरीर दीया है माटी का और आत्मा है ज्योति-शिखा । ज्योति के साक्षात्कार के लिए दीए का मूल्यांकन अवश्य है, किन्तु ज्योतिविहीन दीया मनुष्य के कंधे पर मात्र मुर्दे की अर्थी है।
दीये पर दृष्टि की एकाग्रता आत्म-प्रवंचना है । आखिर माटी का मोल -माटी तक ही सीमित है। 'ऑरो' की परिभाषा तो ज्योति-शिखा के पास है। चेतना के ऊर्ध्वगमन के सारे मूल्य ज्योति पर टिके हैं । जिनके ऊर्ध्वगमन के रास्ते बंद हो चुके हैं, वहां जीवन नहीं, मात्र मिट्टी के मुखौटे हैं । अमृत वहां है, जहाँ मर्त्य के पार विहार करने की पेशकश है । मित्र ! मेरा निमंत्रण उसी अमृत के लिए है जहाँ समाधि की छाँह में निर्धूम प्रज्वलित रहती है जीवन की ज्योति-शिखा | जरा बनाओ स्वयं को उस सन्देश का सम्राट, जिससे गिरा सको अन्तर-जगत् के कारागृह के बन्धन ।
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