________________
२६
चलें, मन के-पार हो या बौद्ध कुल में या ईसाई, पारसी, हिन्दू कुल में बातें सिद्धान्तों की चाहे जितनी कर लें, पर कर्म से तो वह चार्वाकी है । आत्मा और परमात्मा की बातें करने वाले, शरीर और संसार की नश्वरता का बखान करने वाले 'खाओ, पियो, मौज उड़ाओ' की उमर खैयामी जिन्दगी जी रहे हैं ।
मार के पीछे बड़े-बड़े धुरन्धर पागल हैं । आम आदमी तो मार के इशारे पर है ही, यह उन लोगों को भी डिगा देता है, जिनका चित्त राम से आन्दोलित है । ले आता है यह किसी अप्सरा को और उसे कर्तव्य-पथ पर आगे बढ़ने से फिसला देता है । मेनका मार की ही तो माया है ।
___ समझें मार की राजनीति बनाम कूटनीति को । मार और कुछ नहीं, व्यक्ति की स्वयं-की-कमजोरी है । मूलतः मार का कोई अस्तित्व नहीं है ! यह तो व्यक्ति की दुर्बलता है । मार वहीं पर शैतान बनता है, जहाँ वह व्यक्ति को दुर्बल देखता है। कहते हैं 'निर्बल के बल राम' । यह तो मात्र संतोष करने के लिए है । शैतानियत जितनी निर्बल करते हैं, उतनी सबल लोग नहीं करते । जहाँ व्यक्ति सबल है, वहाँ शैतान नहीं है । जहाँ व्यक्ति निर्बल है शैतान वहीं है । मार वहीं है ।
जो व्यक्ति जितना ज्यादा निर्बल होगा, वह मार से उतना ही प्रभावित होगा । सैक्स या एड्स से वे ही पीड़ित हैं, जो दुर्बल हैं । जिसने पहचान लिया अपने बल को और बल के कारणों को, उसका चित्त मार से कभी कम्पित नहीं हो सकेगा । एड्स निर्बलता है । निर्बल की सोहबत से निर्बलता को बढ़ावा मिलेगा, सबल के सम्पर्क में सबलता निखरेगी ।
कांच को सूरज की ओर करके देखो, उसमें भी बिजली पैदा हो जाएगी । अगर उसके झल्के को किसी दूसरे व्यक्ति की आँखों पर गिरा दो तो वह क्षण भर में आन्दोलित हो जाएगा । वास्तव में सबल होने का नाम योग है | सबल होना चारों ओर से संयत होना है और संयम-से-भरा जीवन अस्तित्व की सबसे बड़ी उपलब्धि है । निर्बल का पुरुषार्थ तो अंधेरे से लड़ना है । उसे जो भी सूझता है, वह अन्धे का सूझना है । कैसा व्यंग्य है यह कि अन्धे को अँधेरे में दूर की सूझती है ।
यह चित्त राम से आन्दोलित होता है, तब निश्चित है कि मार उसके
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org