Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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पूर्व व उत्तर भारत में धार्मिक प्रसार का इतिहास
सिंह । अनेक लेखों में जो संघों, गणों, गच्छों आदि के उल्लेख मिलते हैं उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:- मूलसंघ, नंदिसंघ, नमिलूरसंघ, मयूरसंघ, किटूरसंघ, कोल्लतूरसंघ, नंदिगण, देशीगण, द्रमिल (तमिल) गण काणूर गण, पुस्तक या सरस्वती गच्छ, वक्रगच्छ, तगरिलगच्छ, मंडितटगच्छ, इंगुलेश्वरबलि, पनसोगे बलि, आदि।
पूर्व व उत्तर भारत में धार्मिक प्रसार का इतिहास
___ महावीर ने स्वयं बिहार करके तो अपना उपदेश विशेष रूप से मगध, विदेह अंग, बंग, आदि पूर्व के देशों, तथा पश्चिम की ओर कोशल व काशी प्रदेश में ही फैलाया था, एवं तत्कालीन मगधराज श्रेणिक बिंबसार व उनके पुत्र कुणिक अजातशत्रु को अपना अनुयायी बनाया था । इसका भी प्रमाण मिलता है कि नंद राजा भी जैन धर्मानुयायी थे। ई० पू० १५० के लगभग के खारवेल के शिलालेख में स्पष्ट उल्लेख है कि जिस जैन प्रतिमा को नंदराज कलिंग से मगध में ले गये थे, उसे खारवेल पुनः अपने देश में वापस लाए । यह लेख अरहंतो और सिद्धों को नमस्कार से प्रारम्भ होता है, और फिर उसमें खारवेल के कुमारकाल के शिक्षण के पश्चात् राज्याभिषिक्त होकर उनके द्वारा नाना प्रदेशों की विजय तथा स्वदेशा में विविध लोकोपकारी कार्यों का विवरण पाया जाता है। कलिय (उड़ीसा) में जैनधर्म बिहार से ही गया है, इसमें तो सन्देह ही नहीं; और बिहार का जैनधर्म से संबंध इतिहासातीत काल से रहा है । भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार बिहार से उडीसा जाने का मार्ग मानभूम
और सिंहभूम जिलों में से था । मानभूम के ब्राह्मणों में एक वर्ग अब भी ऐसा विद्यमान है जो अपने को 'पच्छिम ब्राह्मण' कहते हैं, और वे वर्धमान महावीर के वंशज रूप से वर्णन किये जाने हैं। वे यह भी कहते हैं कि वे उस प्राचीनतम आर्य वंश की शाखा के हैं जिसने प्रति प्राचीन काल में इस भूमि पर पैर रखा । आदितम श्रमण-परम्परा आर्यों की ही थी, किन्तु ये आर्य वैदिक आर्यों के पूर्व भारत की ओर बढ़ने से पहले ही मगध विदेह में रहते थे, इसमें अब कोई सन्देह रहा नहीं प्रतीत होता । इस दृष्टि से उक्त पच्छिम ब्राह्मणों' की बात बड़े ऐतिहासिक महत्व की जान पड़ती है। यों तो समस्त मगध प्रदेश में जैन पुरातत्व के प्रतीक बिखरे हुए हैं, जिनमें पटना जिले के राजगिर और पावा, तथा हजारीबाग जिले का पार्श्वनाथ पर्वत सुप्रसिद्ध ही हैं। किन्तु इन स्थानों में वर्तमान में जो अधिकांश मूर्तियाँ आदि पाई जाती हैं, उनकी अपेक्षा मानभूम और सिंहभूम जिलों के नाना स्थानों में बिखरे हुए जैन मन्दिर व मूर्तियां अधिक प्राचीन सिद्ध होते हैं । इनमें से अनेक आजकल हिन्दुओं द्वारा अपने धर्मायतन
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