Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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प्रथमानुयोग-संस्कृत
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देवी द्वारा निर्दिष्ट सात दुष्कर कार्य सम्पन्न कर दिखाता, ३२ सुन्दरियों से विवाह करता और अपार धन व राज्य पाता है। अंततः उपदेश पाकर वह जैन धर्म में दीक्षित और प्रवृजित होकर सल्लेखना विधि से मरण करता है। अंबड नाम के तांत्रिक का नाम ओवाइय उपांग में आता है, किन्तु उक्त कथानक इसी कर्ता की कल्पना है। अमरसुन्दर का नाम वि० सं० १४५७ में सूरिपद प्राप्त करनेवाले सोमसुन्दर गणी के शिष्यों में आता है, और वहां उन्हें 'संस्कृत-जल्प-पटु' कहा गया है । इस कथानक का जर्मन अनुवाद चार्लस क्राउस ने किया है । यही कथा हर्ष समुद्र वाचक (१६ वीं शती) व जयमेरु कृत भी मिलती है।
ज्ञानसागर सूरि कृत रत्नचूड कथा (१५वीं शती) का यद्यपि देवेन्द्रमूरि कृत प्राकृत कथा से नामसाम्य है, तथापि यह कथा उससे सर्वथा भिन्न है। यहां अनीतपुर के अन्यायी राजा और दुर्बुद्धि मंत्री का वृत्तान्त है। उस नगरी में चोरों और धर्मों के सिवाय कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं रहते । कथा में नाना उपकथानक भरे हैं । रोहक अपनी विलक्षण बुद्धि द्वारा जेसे दुष्कर कार्य करके दिखलाता है, उनसे पालि की महा-उम्मग्ग जातक में वर्णित महोसध नामक पुरुष के अद्भुत कारनामों का स्मरण हो आता है। रत्नचूड के विदेश के लिये प्रस्थान करते समय उसके पिता के द्वारा दिये गये उपदेशों में एक प्रोर व्यवहारिक चातुरी, और दूसरी ओर अन्धविश्वासों का मिश्रण है। महापुरुष के ३२ चिहून भी इसमें गिनाये गये हैं।
- अघटकुमार-कथा में जिनकीर्ति कत चम्पक-श्रेष्ठि-कथानक के सदश पत्रविनिमय द्वारा नायक के मृत्यु से बचने की घटना आई है। इसका जर्मन अनुवाद चार्लस क्राउस ने किया हैं। इसके दो पद्यात्मक संस्करण भी मिलते हैं, किन्तु किसी के भी कर्ता का नाम नहीं मिलता, और रचना काल भी अनिश्चित है । यह अनुमानतः १५-१६ वीं शती की रचना है।
जिनकीति कृत चम्पकष्ठिकथानक (१५ वीं शती) का आख्यान सुप्रसिद्ध है। इसमें ठीक समय पर पत्र मिल जाने से सौभाग्यशाली नायक मृत्यु के मुख में से बच जाता है । कथा के भीतर तीन और सुन्दर उपाख्यान हैं। यह कथा मेरुतुग की प्रबन्ध चिन्तामणि व अन्य कथाकोषों में भी मिलती है। इसका सम्पादन व प्रकाशन अंग्रेजी में हर्टेल द्वारा हुआ है । जर्मन अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है।
जिन कीति की इसीप्रकार की दूसरी रचना पाल-गोपालकथानक है, जिसमें उक्त नाम के दो भ्राताओं के परिभ्रमण व नानाप्रकार के साहसों व प्रलोभनों को पार कर, अन्त में धार्मिक जीवन व्यतीत करने का रोचक वृत्तान्त है।
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