Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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अपभ्रंश
२०६
देखा । यहाँ विष्णु महादेव, ब्रह्मा एवं अन्य भी अनेक देवता निवास करते थे, जिससे इसकी महिमा ने (एक मात्र इन्द्रदेव बाली) सुर-पुरी की महिमा को तिरस्कृत किया था। यहां लोग अंजलि भर-भर कर सुवर्ण और रत्न दान करते थे, तो भी उनके सुवर्ण और रत्नों की निधियां अक्षय बनी हुई थीं। ऐसे उस अनहिलपुर नगर में अपने बाहु पर समस्त धरा को धारण किये हुए सुप्रतिष्ठ परिवार सहित राजेन्द्र श्री कुमारपाल सुप्रतिष्ठित थे।
अवतरण- ७
अपभश सहुं दोहि मि गेहणिहिं तुरंगें सहुं वीरेण तेण मायंगें। गउ झसचिंधु णवर कस्सीरहो कस्सीरय-परिमिलियसमीरहो। कस्सीरउ पट्टणु संपाइउ चामरछत्तभिच्चरह-राइउ । णंदु राउ सयडंमुहं आइउ गरिहे पेम्मजरुल्लउ लाइउ । का वि कंत झूरवइ दुचित्ती का वि अणंगलोयणे रत्ती। पाएं पडइ मूढ़ जामायहो धोयइ पाय घएं घरु आयहो। घिवइ तेल्लु पाणिउ मण्णेप्पिणु कुठु देही छुडु दारु भणेप्पिणु । अइ अण्णमण डिंभु चिंतेप्पिणु गय मज्जारयपिल्लउ लेप्पिणु । धूवइ खीरु का वि चलु मंथइ का वि असुत्तउ मालउ गुथइ । ढोयइ सुहयहो सुहई जणेरी भासइ हउं पिय दासि तुहारी ।
(णायकुमारचरिउ-५, ८, ६-१५)
(अनुवाद) नागकुमार अपनी दोनों गृहिणियों, घोड़े, और उस व्याल नामक वीर के साथ उस काश्मीर देश को गया जहां का पवन केशर की गंध से मिश्रित था। काश्मीरपट्टण में पहुँचने पर वहां का राजा नंद चंवर, छत्र, सेवक व रथादि से विराजमान स्वागत के लिए सम्मुख आया। उधर नगर-नारियों को प्रेम का ज्वर चढ़ा । कोई कान्ता दुविधा में पड़ी झुरने लगी, और कोई उस कामदेव के अवतार नाणकुमार के दर्शन में तल्लीन हो गई। कोई मूढ़ अवस्था में अपने घर आये हुए जामाता के पांव पड़कर उन्हें घृत से धोने लगी। पानी के धोखे
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