Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जैन मूर्तियां
३४६ जाता है। कुछ मूर्तियों पर कुबेर व गोद में बालक सहित माता (बी ६५) तथा नवग्रह (बी ६६) भी बने हैं । तीर्थंकर नेमिनाथ की मूर्ति के पावों में बलदेव को एक हाथ में प्याला लिये हुए, तथा अपने शंख चक्रादि लक्षणों सहित वासुदेव की चतुभुज मूर्तियां भी हैं (२७३८)। यक्ष-यक्षिणी आदि शासन देवताओं का आसनों पर अंकन भी प्रचुरता से पाया जाता हैं । आदिनाथ की एक पद्मासन मूर्ति के साथ शेष २३ तीर्थंकरों की भी पद्मासनस्थ प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं । इससे पूर्व कुषाण व गुप्त कालों में प्रायः चार तीर्थंकरों वाली सर्वतोभद्र मूर्तियां पाई गई हैं। प्रमावल व सिंहासनों का अलंकरण विशेष अधिक पाया जाता है । एक आदिनाथ की मूर्ति (बी २१) के सिंहासन
की किनारी पर से पुष्पमालाएं लटकती हुई व धर्मचक्र को स्पर्श करती हुई दिखाई गई हैं । कुछ मूर्तियां काले व श्वेत संगमरमर की बनी हुई भी पाई गई हैं। कुछ मूर्तियों के ऊपर देवों द्वारा दुदुभी बजाने की आकृति भी अंकित है। ये ही संक्षेपतः इस काल की मूर्तियों की विशेषताएं हैं। इस काल में तीथंकरों के जो विशेष चिन्ह निर्धारित हुए, व जो यज्ञ-यक्षिणी प्रत्येक तीर्थकर के अनुचर ठहराये गये, व जिन चैत्यवक्षों का उनके केवल ज्ञान से सम्बन्ध स्थापित किया गया, उनकी तालिका (त्रि० प्र० ४, ६०४-०५, ६१६-१८, ६३४-४० के अनुसार) निम्न प्रकार है । क्रमसंख्या तीर्थकरनाम चिन्ह चैत्यवृक्ष यज्ञ यक्षिणी १ ऋषभनाथ बैल न्यग्रोध गोवदन चक्रेश्वरी २ अजितनाथ गज सप्तपर्ण महायक्ष रोहिणी
संभवनाथ प्रश्व शाल त्रिमुख प्रज्ञप्ति अमिनंदननाथ बन्दर सरल यक्षेश्वर वज्रशृखला सुमतिनाथ चकवा प्रियंगु तुम्बुरव वज्रांकुशा पद्मद्रभु कमल
मातंग अप्रति चक्रेश्वरी सुपाश्वनाथ नंद्यावर्त शिरीष विजय पुरुषदत्ता चन्द्रप्रभु अर्द्धचन्द्र नागवृक्ष अजित मनोवेगा पुष्पदन्त मकर अक्ष (बहेड़ा) ब्रह्म काली शीतलनाथ स्वस्तिक धूलि(मालिवृक्ष)ब्रह्मेश्वर ज्वालामालिनी श्रेयांसनाथ गेंडा पलाश कुमार महाकाली वासुपूज्य भैंसा
षण्मुख गौरी १३ विमलनाथ शूकर पाटल पाताल गांधारी
अनंतनाथ सेही पीपल किन्नर वैरोटी १५ धर्मनाथ वज्र दधिपर्ण किंपुरुष सोलसा
प्रियंगु
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