Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जैन कला
सिर पर सुन्दर मुकुट है, जिसके पीछे शोभनीक प्रभावल भी है । गले में दो लड़ियों वाला हार, हाथों में चूड़ियाँ, कटि में मेखला व पैरों में नुपुर आभूषण है । बालक नग्न है, किन्तु गले में हार, बाहुओं में भुजबंध, कलाई में कड़े तथा कमर में करधनी पहने हुए है। अम्बिका की बाजू से एक दूसरा बालक खड़ा है, जिसका दाहिना हाथ अम्बिका के दाहिने घुटने पर है । इस खड़े हुए बालक के दूसरी ओर गणेश की एक छोटी सी मूर्ति है, जिसके बाएं हाथ में मोदक पात्र है, जिसे उनकी सूड स्पर्श कर रही है। उसके ठीक दूसरे पार्श्व में एक अन्य आसीन मूर्ति है जिसके दाहिने हाथ में एक पात्र और बाएं में मोहरों की थैली है, और इसलिए धनद-कुबेर की मूर्ति प्रतीत होती है। कुबेर और गणेश की मूर्तियों के अपने-अपने कुछ लम्बाकार प्रभावल भी बने है। इन सबके दोनों पाश्वों में चमरधारी मूर्तियाँ है । आसन से नीचे की पट्टी में आठ नर्तकियां है। ऊपर की ओर पुष्प-मंडपिका बनी है, जिसके मध्य भाग में पद्मासन व ध्यानस्थ जिनमूति है । इसके दोनों ओर दो चतुर्भुजी मूर्तियां कमलों पर त्रिभंगी मुद्रा में खडी हैं । दाहिनी ओर की मूर्ति के हाथों में हल व मूसल होने से वह स्पष्टतः बलराम की, तथा बायीं ओर की चतुर्भुज मूर्ति के बाएं हाथों में चक्र व शंख तथा दाहिने हाथों में पद्म व गदा होने से वह वासुदेव की मूर्ति है। दोनों के गलों में वैजयन्ती मालाएं पड़ी हुई है । बलभद्र और वासुदेव सहित नेमिनाथ तीर्थकर की स्वतंत्र मूर्तियां मथुरा व लखनऊ के संग्रहालयों में विद्यमान हैं । प्रस्तुत अम्बिका की मूर्ति में हमें जैन व वैदिक परम्परा के अनेक देवी-देवताओं का सुन्दर समीकरण मिलता है, जिसका वर्णानात्मक पक्ष हम जैन पुराणों में पाते हैं।
पुण्याश्रव-कथाकोष की यक्षी की कथा के अनुसार गिरिनार की अग्निला नाम की धर्मवती ब्राह्मण-महिला अपने पति की कोप-भाजन बनकर अपने प्रियंकर और शुभंकर नामक दो अल्प-वयस्क पुत्रों को लेकर गिरिनार पर्वत पर एक मुनिराज की शरण में चली गई। वहां बालकों के क्षुधाग्रस्त होने पर उसके धर्म के प्रभाव से वहाँ एक आम्रवृक्ष अकाल में ही फूल उठा । उसकी लुम्बिकाओं (गुच्छों) द्वारा उसने उन बालकों की क्षुधा को शान्त किया। उधर उसके पति सोमशर्मा को अपनी भूल का पता चला तो वह उसे मनाने आया । अग्निला समझी कि वह उसे मारने आया है। अतएव वह तत्कालीन तीर्थंकर नेमिनाथ का ध्यान करती हुई पर्वत के शिखर से कूद पडी, और शुभ ध्यान से मरकर नेमिनाथ को यक्षिणी अम्बिका हुई । उसका पति यथासमय मरकर सिंह के रूप में उसका वाहन हुआ। इस प्रकार अम्बिका के दो पुत्र, प्रामवृक्ष और आम्रफलों की लम्बिका और सिंहवाहन, ये उस देवी की मूर्ति के लक्षण बने ।
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