Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जैन चित्रकला
उदाहरण देकर बतलाया है कि किसी भी व्यवसाय का अभ्यास ही, उसमें पूर्ण प्रवीणता प्राप्त करता है। चूर्णिकार ने इस बात को समझाते हुए कहा है कि निरन्तर अभ्यास द्वारा चित्रकार रूपों के समुचित प्रमाण को बिना नापेतोले ही साध लेता है। एक चित्रकार के हस्त-कौशल का उदाहरण देते हुए आवश्यक टीका में यह भी कहा है कि एक शिल्पी ने मयूर का पंख ऐसे कौशल से चित्रित किया था कि राजा उसे यथार्थ वस्तु समझकर हाथों में लेने का प्रयत्न करने लगा। आव० चूर्णिकार ने कहा है कि सूत्र के अर्थ को स्पष्ट करने में भाषा और विभाषा का वही स्थान है जो चित्रकला में । चित्रकार जब किसी रूप का संतुलित माप निश्चय कर लेता है, तब वह भाषा और प्रत्येक अंगोपांग का प्रमाण निश्चित कर लेता है तब विभाषा, एवं जब नेत्रादि अंग चित्रित कर लेता है वह वार्ता की स्थिति पर पहुंचता है। इस प्रकार जैन साहित्यिक उल्लेखों से प्रमाणित है कि जैन परम्परा में चित्रकला का प्रचार अति प्राचीन काल में हो चुका था और यह कला सुविकसित तथा सुव्यवस्थित हो चुकी थी। भित्ति-चित्र
जैन चित्रकला के सबसे प्राचीन उदाहरण हमें तामिल प्रदेश के तंजोर के समीप सिस्तन्नवासल की उस गुफा में मिलते हैं जिसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है । किसी समय इस गुफा में समस्त मित्तिया व छत चित्रों से अलंकृत थे, और गुफा का वह अलंकरण महेंद्रवर्मा प्रथम के राज्य काल (ई० ६२५) में कराया गया था। शैव धर्म स्वीकार करने से पूर्व यह राजा जैन धर्मावलम्बी था । वह चित्रकला का इतना प्रेमी था कि उसने दक्षिण-चित्र नामक शास्त्र का संकलन कराया था। गुफा के अधिकांश चित्र तो नष्ट हो चुके हैं, किन्तु कुछ अब भी इतने सुव्यवस्थित हैं कि जिनसे उनका स्वरूप प्रकट हो जाता है । इनमें आकाश में मेघों के बीच नृत्य करती हुई अप्सराओं की तथा राजा-रानी की आकृतियां स्पष्ट सौर सुन्दर हैं। छत पर के दो चित्र कमल-सरोवर के है। सरोवर के बीच एक युगल की आकृतियां है, जिनमें स्त्री अपने दाहिने हाथ से कमलपुष्प तोड़ रही है, और पुरुष उससे सटकर बाएं हाथ में कमल-नाल को कंधे पर लिए खड़ा है । युगल का यह चित्रण बड़ा ही सुन्दर है। ऐसा भी अनुमान किया गया है कि ये चित्र तत्कालीन नरेश महेंद्रवर्मा और उनकी रानी के ही है । एक ओर हाथी अनेक कमलनालों को अपनी सूड में लपेटकर उखाड़ रहा है, कहीं गाय कमलनाल चर रही हैं, हंस-युगल क्रीड़ा कर रहे है, पक्षी कमल मुकुलों पर बैठे हुए हैं, व मत्स्य पानी में चल-फिर रहे हैं। दूसरा चित्र भी इसी का क्रमानुगामी हैं। उसमें एक मनुष्य तोड़े हुए कमलों से भरी हुई टोकरी लिये हुए हैं, तथा हाथी और बैल क्रीड़ा कर रहे हैं । हाथियों का रंग भूरा व
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