Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जैन कला
की शैलियों की विविधता स्पष्ट की जा सकती है । वहां के १२ वें मन्दिर के मण्डप में आसनस्थ जिनप्रतिमा को देखिये, जिसका मस्तक विशाल, अधर स्थूल व खूब सटे हुए तथा भृकुटियां कुछ अधिक ऊपर को उठी हुई दिखाई देती हैं । यहाँ ध्यान व एकाग्रता का भाव खूब पुष्ट है, किन्तु लावण्य एवं परिकरात्मक साज-सज्जा का अभाव है। उसी मन्दिर के गर्भगृह में शान्तिनाथ की विशाल खड्गासन प्रतिमा की ओर ध्यान दीजिये, जो अपने कलात्मक गुणों के कारण विशेष गौरवशाली है । भामण्डल की सजावट तथा पार्श्वस्थ द्वारपालों का लावण्य व भावभंगिमा गुप्तकाल की कला के अनुकूल है, फिर भी परिकरों के साथ मूर्ति का तादात्म्य नहीं हो पाया। दर्शक के ध्यान का केन्द्र प्रधान मूर्ति ही है, जो अपने गाम्भीर्य व विरक्तिभाव युक्त कठोर मुद्रा द्वारा दर्शक के मन में भयमिश्रित पूज्यभाव उत्पन्न करती है। उक्त दोनों मूर्तियों से सर्वथा भिन्न शैली की वह पद्मासन प्रतिमा है जो १५ वें मन्दिर के गर्भगृह में विराजमान है। इस मूर्ति में लावण्य, प्रसाद, अनुकम्पा आदि सद्गुण उतने ही सुस्पष्ट है, जितने ध्यान और विरक्ति के भाव । ज्ञान, ध्यान और लोक कल्याण की भावना इस मूर्ति के अंग-अंग से फूट फूट कर निकल रही है। परिकरों की सजावट भी अनुकूल ही है। प्रभावल खूब अलंकृत है। दोनों पावों के द्वारपाल, ऊपर छत्र-त्रय व गज-लक्ष्मी आदि की आकृतियाँ भी सुन्दर और आकर्षक है । ये गुण २१ वें मन्दिर के दक्षिण-कक्ष के देवकुला में स्थित प्रतिमा में और भी अधिक विकसित दिखाई देते हैं । यहाँ चारों ओर की आकृतियाँ व अलंकरण इतने समृद्ध हुए है कि दर्शक को उनका आकर्षण मुख्य प्रतिमा से कम नहीं रहता । इस कारण मुख्य प्रतिमा समस्त दृश्य का एक अंग मात्र बन गई है । यह अलंकरण की समृद्धि मध्यकाला की विशेषता है। तीर्थंकर मूर्तियों के चिन्ह__प्रतिमाओं पर पृथक्-पृथक् चिन्हों का प्रदर्शन मध्य युग में (८ वीं शती ई० से) धीरे-धीरे प्रचार में आया पाया जाता है। इस युग की उक्त मथुरा संग्रहालय की सूची में जिन ३३ तीर्थंकर प्रतिमाओं का उल्लेख किया गया है, उनमें आदिनाथ की मूर्ति (बी २१ व बी ७६) पर वृषभ का चिन्ह, नेमिनाथ की प्रतिमा (बी २२, सं० ११०४; बी ७७) पर शंख का, तथा शांतिनाथ की मूर्ति (१५०४) पर मृग का चिन्ह पाया जाता है। शेष मूर्तियों पर ऐसे विशेष चिन्हों का अंकन नहीं है । एक मूर्ति (ए०६०) पर लंगोटी का चिन्ह दिखाया गया है । कुछ के चूचकों के स्थान पर चक्राकृति बनी है । कुछ के हस्त-तलों पर चतुर्दल पुष्प पाया जाता है। मूर्तियों पर तीन छत्रों का अंकन भी देखा
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