Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
View full book text
________________
३५०
१६ शान्तिनाथ हरिण १७ कुंथुनाथ छाग
१८ अरहनाथ
तगरकुसुम ( मत्स्य )
१६ मल्लिनाथ कलश २० मुनिसुव्रतनाथ कूर्म
२१
नेमिनाथ उत्पल
२२ नेमिनाथ
शंख
२३ पार्श्वनाथ सर्प
२४ महावीर सिंह
नंदी
तिलक
आम्र
Jain Education International
गरुड
गंधर्व
कुवेर
कंकेली (अशोक) वरुण
चम्पक भृकुटि
गोमेघ
पार्श्व
बकुल
मेष ग
धव
शाल
मातंग
गुह्यक
जैन कला
अनन्तमती
मानसी
महामानसी
जया
विजया
अपराजिता
बहुरूपिणी
समवायांग सूत्र में भी प्रायः यही चैत्यवृक्षों की नामावली पाई जाती है । भेद केवल इतना है कि वहाँ चौथे स्थान पर 'प्रियक' छठे स्थान पर छत्ताह, नौवे पर माली, १० वें पर पिलंखु, ११, १२, १३, पर तिदुग, पाटल और जम्बू, व १६ वें पर अशोक, २२ वें पर वेडस नाम अंकित हैं ।
For Private & Personal Use Only
कुमा
पद्मा सिद्धायिनी
विशालता की दृष्टि से मध्यप्रदेश में बड़वानी नगर के समीप चूलगिरि नामक पर्वश्रेणी के तलभाग में उत्कीर्ण ८४ फुट ऊंची खड्गासन प्रतिमा है जो बावनगजा के नाम से प्रसिद्ध है । इसके एक ओर यक्ष और दूसरी ओर यक्षिणी भी उत्कीर्ण हैं । चूलगिरि के शिखर पर दो मन्दिरों में तीन-चार मूर्तियों पर संवत् १३८० का उल्लेख है जिससे इस तीर्थक्षेत्र की प्रतिष्ठा कम से कम १४ वीं शती से सिद्ध हैं। देश के प्रायः समस्त भागों के दिगम्बर जैन मन्दिरों में ऐसी जिन - प्रतिमाएं विराजमान पाई जाती हैं, जिनमें उनके शाह जीवराज पापड़ीवाल द्वारा सं० १५४८ (१४६० ई०) में प्रतिष्ठित कराए जाने का, तथा भट्टारक जिनचन्द्र या भानुचन्द्र का स्थान मुड़ासा का, व राजा या रावल शिवसिंह का उल्लेख मिलता है । मुड़ासा पश्चिम राजस्थान में ईडर से पाँचछह मील दूर एक गाँव है । एक किंवदंती प्रचलित है पापड़ीवाल ने एक लाख मूर्तियाँ प्रतिष्ठित कराकर उनका वितरण कराया था ।
कि सेठ जीवराज सर्वत्र पूजानिमित्त
धातु की मूर्तियां -
यहां तक जिन मूर्तियों का परिचय कराया गया वे पाषाण निर्मित हैं । धातुनिर्मित प्रतिमाएं भी अतिप्राचीन काल से प्रचार में पाई जाती है । ब्रोन्ज (ताम्र व शीशा मिश्रित धातु) की बनी हुई एक पार्श्वनाथ की प्रतिमा बम्बई प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय में है । दुर्भाग्य से इसका पादपीठ नष्ट हो गया
www.jainelibrary.org