Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जैन मूर्तियाँ
३५३ कृत महापुराण (३६, १०४-१८५) में किया गया है। रविषेणाचार्य ने अपने पद्मपुराण में संक्षेपतः कहा है--
संत्यज्य स ततो भोगान् भूत्वा निर्वस्त्रभूषणः । वर्ष प्रतिमया तस्थौ मेरुवन्निष्प्रकम्पकः । वल्मीकविवरोद्ययातैरत्युप्रैः स महोरगैः । श्यामादीनां च बल्लीभि: वेष्टितः प्राप केवलम् ॥ (प० पु० ४,७६-७७)
इस वर्णन में जो वमीठों व लता के शरीर में लिपटने का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक के सम्मुख बाहुबलि की इन लक्षणों से युक्त कोई मूर्तिमान् प्रतिमा थीं। काल को दृष्टि के उस समय बावामी की गुफा की बाहुबलि मूर्ति बन चुकी सिद्ध होती है। रविषेणाचार्य उससे परिचित रहे हो तो आश्चर्य नहीं। बादामी की यह मूर्ति लगभग सातवीं शती में निर्मित साढ़े सात फुट ऊंची है । दूसरी प्रतिमा ऐलोरा के छोटे कैलाश नामक जैन-शिलामंदिर की इन्द्रसभा की दक्षिणी दीवार पर उत्कीर्ण है । इस गुफा का निर्माण काल लगभग ८ वीं शती माना जाता है। तीसरी भूर्ति देवगढ़ के शान्तिनाथ मन्दिर (८६२ ई०) में हैं, जिसकी उपयुक्त मूर्तियों से विशेषता यह है कि इसमें वामी, कुक्कुट सर्प व लताओं के अतिरिक्त मूर्ति पर रेंगते हुए बिच्छू, छिपकली आदि जीव-जन्तु भी अंकित किये गये हैं, और इन उपसर्गकारी जीवों का निवारण करते हुए एक देव-युगल भी दिखाया गया हैं। किन्तु इन सबसे विशाल और सुप्रसिद्ध मंसूर राज्य के अन्तर्गत श्रवणबेल गोला के विध्यगिरि पर विराजमान वह मूर्ति है जिसकी प्रतिष्ठा गंगनरेश राजमल्ल के महामंत्री चामुंडराय ने १०-११ वीं शती में कराई थी। यह मूर्ति ५६ फुट ३ इन्च ऊंची है और उस पर्वत पर दूर से ही दिखाई देती है । उसके अंगों का सन्तुलन, मुख का शांत और प्रसन्न भाव, वल्मीक व माधवी लता के लपेटन इतनी सुन्दरता को लिए हुए है कि जिनकी तुलना अन्यत्र कहीं नहीं पाई जाती । इसी मूर्ति के अनुकरण पर कारकल में सन् १४३२ ई० में ४१ फुट ६ इन्च ऊंची, तथा वेणर में १६०४ ई० में ३५ फुट ऊंची अन्य दो विशाल पाषाण मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हुई। धीरे-धीरे इस प्रकार की बाहुबलि की मूर्ति का उत्तर भारत में भी प्रचार हुआ है । इधर कुछ दिनों से बाहुबलि की मूर्तियां अनेक जैन मंदिरों में प्रतिष्ठित हुई हैं।
किन्तु जो बोन्ज-धातु निर्मित मूर्ति अब प्रकाश में आई है। वह उपर्युक्त समस्त प्रतिमाओं से प्राचीन अनुमान की जाती है । उसका निर्माणकाल
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