Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जैन गुफाएं प्राचीनतम काल से जैन मुनियों को नगर-ग्रामादि बहुजन-संकीर्ण स्थानों से पृथक् पर्वत व वन की शून्य गुफाओं वा कोटरों आदि में निवास करने का विधान किया गया है, और ऐसा एकान्तवास जैन मुनियों की साधना का आवश्यक अंग बतलाया गया है (त० सू० ७, ६ स० सिद्धि) । और जहां जैन मुनि निवास करेगा, वहां ध्यान व वंदनादि के लिये जैन मूर्तियों की भी स्थापना होगी। प्रारम्भ में शिलाओं से आधारित प्राकृतिक गुफाओं का उपयोग किया जाता रहा होगा । ऐसी गुफाएं प्रायः सर्वत्र पर्वतों की तलहटी में पाई जाती है। ये ही जैन परम्परा में मान्य अकृत्रिम चैत्यालय कहे जा सकते हैं । क्रमशः इन गुफाओं का विशेष संस्कार व विस्तार कृत्रिम साधनों से किया जाने लगा, और जहाँ उसके योग्य शिलाएं मिलीं उनको काटकर गुफाविहार व मन्दिर बनाये जाने लगे। ऐसी गुफाओं में सबसे प्राचीन व प्रसिद्ध जैन जुफाएं बराबर व नागाअर्जुनी पहाड़ियों पर स्थित हैं । ये पहाड़ियां गया से १५-२० मील दूर पटना-गया रेलवे के बेला नामक स्टेशन से ८ मील पूर्व की ओर हैं । बराबर पहाड़ी में चार, व उससे कोई एक मील दूर नागार्जुनी पहाड़ी में तीन गुफाएं हैं । बराबर की गुफाएं अशोक, व नागार्जुनी की उसके पौत्र दशरथ द्वारा आजीवक मुनियों के हेतु निर्माण कराई गई थीं। आजीवक सम्प्रदाय यद्यपि उस काल (ई० पू० तृतीय शती) में एक पृथक सम्प्रदाय था, तथापि ऐतिहासिक प्रमाणों से उसकी उत्पत्ति व विलय जैन सम्प्रदाय में ही हुप्रा सिद्ध होता है। जैन आगमों के अनुसार इस सम्प्रदाय का स्थापक मंखलिगोशाल कितने ही काल तक महावीर तीर्थंकर का शिष्य रहा, किन्तु कुछ सैद्धान्तिक मतभेद के कारण उसने अपना एक पृथक सम्प्रदाय स्थापित किया। परन्तु यह सम्प्रदाय पृथक् रूप से केवल दो-तीन शती तक ही चला,
और इस काल में भी प्राजीवक साधु जैन मुनियों के सदृश नग्न ही रहते थे, तथा उनकी भिक्षादि संबंधी चर्या भी जैन निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय से भिन्न नहीं थी। अशोक के पश्चात् इस सम्प्रदाय का जैन संघ में ही विलीनीकरण हो गया, और तब से इसकी पृथक् सत्ता के कोई उल्लेख नहीं पाये जाते। इस प्रकार आजीवक मुनियों को दान की गई गुफाओं का जैन ऐतिहासिक परम्परा में ही उल्लेख किया जाता है।
बराबर पहाड़ी की दो गुफाएं अशोक ने अपने राज्य के १२ वें वर्ष में, और तीसरी १९ वें वर्ष में निर्माण कराई थी। सुदामा और विश्व झोपड़ी
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