Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जाते हैं जिनसे प्रतीत होता है कि उक्त मंदिर से पूर्व भी यहाँ मन्दिर रहा है । अब हम प्राबू के जैन मन्दिरों पर आते हैं, जहाँ न केवल जैन कला, किन्तु भारतीय वास्तुकला अपने सर्वोत्कृष्ट विकसित रूप में पाई जाती है । आबूरोड स्टेशन से कोई १८ मील, तथा आबू कैम्प से सवा मील पर देलवाड़ा नामक स्थान है, जहां ये जैन मंदिर पाये जाते हैं। ग्राम के समीप समुद्रतल से चार-पांच हजार फुट ऊंची पहाड़ी पर एक विशाल परकोटे के भीतर विमल वसही, लूण - वसही, पितलहर, चौमुखा और महावीर स्वामी नामक पांच मन्दिर हैं । इन मन्दिरों की ओर जाने वाले पथ की दूसरी बाजू पर एक दिगम्बर जैन मन्दिर है । इन सब मंदिरों में कला की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ हैं प्रथम दो । विमलवसही के निर्माण कर्ता विमलशाह पोरवाड़ वंशी, तथा चालुक्यवंशी नरेश भीमदेव प्रथम के मंत्री व सेनापति थे । उनके कोई पुत्र नहीं था । उन्होंने अपना अपार धन व्यय करके, प्राचीन वृत्तान्तानुसार स्वर्ण मुद्राएं बिछाकर वह भूमि प्राप्त की, और उसपर आदिनाथ तीर्थंकर का मन्दिर बनवाया । यह मन्दिर पूरा का पूरा श्वेत संगमरमर पत्थर का बना हुआ है । जनश्रुति के अनुसार इस मन्दिर के निर्माण में १८ करोड ५३ लाख सुवर्ण मुद्राओं का व्यय हुआ । संगमरमर की बड़ी-बड़ी शिलाएं पहाड़ी के तल से हाथियों द्वारा उतनी ऊंची पहाड़ी पर पहुंचाई गई थीं । तथा आदिनाथ तीर्थंकर की सुवर्णमिश्रित पीतल की ४ फुट ३ इंच की विशाल पद्मासन मूर्ति ढलवाकर प्रतिष्ठित की । यह प्रतिष्ठा वि० सं० २०८८ ( ई० १०३१) में मुहम्मद गौरी द्वारा सोमनाथ मन्दिर के विनाश से ठीक सात वर्षं पश्चात् हुई । यह मूर्ति प्रौढ़ दादा के नाम से विख्यात हुई पाई जाती है । इस मन्दिर को बीच-बीच में दो बार क्षति पहुंची जिसका पुनरुद्धार विमलशाह के वंशजों द्वारा वि० सं० १२०६ और १२४५ में व १३६८ में किया गया । इस मन्दिर की रचना निम्न प्रकार है:
जैन कला
एक विशाल चतुष्कोण १२८४७५ फुट लम्बा-चौड़ा प्रांगण चारों भोर देवकुलों से घिरा हुआ है । इन देयकुलों की संख्या ५४ है, और प्रत्येक में एक प्रधान मूर्ति तथा उसके आश्रित अन्य प्रतिमाएं विराजमान हैं । इन देवकुलों के सम्मुख चारों ओर दोहरे स्तम्भों की मंडपाकार प्रदक्षिणा है । प्रत्येक देवकुल के सम्मुख ४ स्तम्भों की मंडपिका आ जाती है, और इस प्रकार कुल स्तम्भों की संख्या २३२ है । प्रांगण के ठीक मध्य में मुख्य मन्दिर है । पूर्व की ओर से प्रवेश करते हुए दर्शक को मन्दिर के नाना भाग इस प्रकार मिलते
हैं:
( १ ), हस्तिशाला - ( २५ X ३० फुट) इसमें ६ स्तम्भ हैं, तथा हाथियों पर
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