Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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जैन कला
आधारित है, और ये खंभे चौकोर दो पंक्तियों में बने हुए हैं। छत की ऊंचाई लगभग १२ फुट है । इसकी दोनों पार्श्व की दीवालों में आठ-आठ व पीछे की दीवाल में छह कोठरियां हैं, जो प्रत्येक लगभग ६ फुट चौकोर है । ये कोष्ठ साधारण रीति के बने हुए हैं, जैसे प्रायः बौद्ध गुफाओं में भी पाये जाते हैं । पश्चिमोत्तर कोने के कोष्ठ के तलभाग में एक गड्ढा है, जो सदैव पानी से भरा रहता है । शाला के मध्य में पिछले भाग की ओर देवालय है, जो १६.३ X १५ फुट लंबा-चौड़ा व १३ फुट ऊंचा है, जिसमें पार्श्वनाथ तीर्थंकर की भव्य प्रतिमा विराजमान है । शेष गुफाएं अपेक्षाकृत इससे बहुत छोटी है । तीसरी व चौथी गुफाओं में भी जिन प्रतिमाएं विद्यमान हैं। तीसरी गुफा के स्तम्भों की बनावट कलापूर्ण है । बर्जेस साहब के मत से ये गुफाएं अनुमानतः ई० ० पू० ५००-६५० के बीच की है । ( आर्के० सर्वे ० ऑफ वेस्टर्न इंडिया वो० ३ ) इस गुफा - समूह के संबंध में जैन साहित्यिक परम्परा यह है कि यहां तेरापुर के समीप पर्वत पर महाराज करकंड ने एक प्राचीन गुफा देखी थी । उन्होंने स्वयं यहां अन्य कुछ गुफाएं बनवाई, और पार्श्वनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठा की । उन्होंने जिस प्राचीन गुफा को देखा था, उसके तलभाग में एक छिद्र से जलवाहिनी निकली थी, जिससे समस्त गुफा भर गई थी । इसका, तथा प्राचीन पार्श्वनाथ की मूर्ति का सुन्दर वर्णन कनकामर मुनि कृत अपभ्रंश काव्य 'करकंडचरिउ' में मिलता है, जो ११ वीं शती की रचना है । करकंड का नाम जैन व बौद्ध दोनों परम्पराओं में प्रत्येक बुद्ध के रूप में पाया जाता है । उनका काल, जैन मान्यतानुसार, महावीर से पूर्व पार्श्वनाथ के तीर्थ में पड़ता है । इस प्रकार यहां की गुफाओं को जंनी अति प्राचीन ( लगभग ई० पू० ६ वीं शती की) मानते हैं
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इतना तो सुनिश्चित है कि ११ वीं शती के मध्यभाग में जब मुनि कनकामर ने करकंडचरिउ लिखा, तब तेरापुर (धाराशिव) की गुफा बड़ी विशाल थी, और बड़ी प्राचीन समझी जाती थी । तेरापुर के राजा शिव ने करकंडु को उसका परिचय इस प्रकार कराया था
एत्थथि देव पच्छिमदिसाहि । श्रइरिणयडउ पव्वउ रम्मु ताहि ॥ तहि श्रत्थि लय रायणावहारि । थंभारग सहासह जं पि धारि ॥
( क० च० ४, ४) । करकंडु उक्त पर्वत पर चढ़े और ऐसे सघन वन में से चले जो सिंह, हाथी, शूकर, मृग, व बानरों आदि से भरा हुआ था ।
थोवंतरि तहिं सो चडइ जाम । करकंडई दिट्ठउ लयणु ताम ॥ हरिण अमर-विमाणु विट्ठ । करकंड गराहिउ तह विट्ठ ॥
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